Wo kisi aur ki hai ab tak, college story in Hindi- Episode 1

Wo kisi aur ki hai ab tak- part1


रात के करीबन एक बजे रहे होंगे और मैं वड़ोदरा स्टेशन पर बस चक्कर लगाया जा रहा था, एक अजीब सी उम्मीद लेकर की वो आएगी , वक़्त कह रही थी कि ये सही वक़्त नहीं है तुमसे मिलने का उसके लिए और आखिर तुम इतना मायने भी तो नहीं रखते न कि वो आधी रात को एक बजे तुमसे मिलने आए। लेकिन ये विश्वास नहीं हो रहा थी मुझे की वो मुझ से
 मिलेगी तक नहीं।
                टहलते टहलते यादें वापस उस रास्ते पर चली गई जहाँ मैंने उसे करीबन 4 शाल पहले पहली बार देखा था...
                        ठीक ज़ेवियर के सामने एगदम नजदीक से वो गुजरी और दोस्तों ने कहा यही है प्रिती...और इसके साथ कई रोमियों ने अपनी आहें भरी मानो सभी विवाह के ताक में बैठे हों, मेरा एगदम साधारण रिएक्शन, की अच्छा ये है, ठीक है अच्छी दिख रही है। लेकिन कुछ ऐसी फीलिंग नहीं आई कि बस शायर बन जाऊँ और एक झटके में घुटने पर बैठ हाथों को पकड़ कह दूं Will you be my life partner या कुछ ऐसी नज्म पढ़ दूँ की सातों जनम बस वो मेरी हो  जाए।

 
नहीं कुछ ऐसी नहीं लगी थी वो मुझे, हाँ दोस्त थे हमारे कुछ, जो इश्क़ में उसके घायल हुए जा रहे थे, मैंने अपने दोस्तों को उसी अवस्था में छोड़, अपने जीवन के पहले कॉलेज को पूरी तरह से जीना शुरू कर दिया क्यों कि बेशक जीवन में लड़कियां भी आएंगी लेकिन पता नहीं ये कॉलेज फिर आये या नहीं। 
                 कॉलेज और फिर कॉलेज से होस्टल आने जाने के शिलशिला ने जीवन में कई असाधारण भावनाओं को जगा दिया था जिसे शायद मैं अपने शब्दों में पुरोकर नहीं रख सकता।
             पहले दिन प्रीति से जब पहली बार मिला, जब कॉलेज गया तो देखा कि वो पहली बेंच में बड़ी शालीनता से बैठी हुई है उसके बगल में मीरा और आरती बैठी थी , भले उसके प्रति मेरे मन में किसी प्रेम कहानी की शुरुआत नहीं हुई थी लेकिन उसे सेम सेक्शन में देख कर बड़ा सुकून मिला , एगदम मूरत बन बैठी वो मानो तनिक भर हिलने में भी संकोच कर रही हो बिल्कुल इस तरह की किसी ने उसे स्टेचू कह दिया हो... मैं अपनी नजरों को उससे हटाकर ब्लैकबोर्ड पर टिकाने की भरपूर कोशिस कर रहा था लेकिन उसकी शालीनता के आगे शायद मेरी सारी कोशिशें असफल थी।
                      वक़्त के साथ धीरे-धीरे मेरी फीलिंग बदलती गई पता नहीं कैसे, क्यों, लेकिन बस होता चला गया, ये फिलिंग क्या थी मुझे नहीं पता और नाहीं कभी जानने की बहुत कोशिस की, अब कॉलेज जाकर सबसे पहले मेरी नजरें उसे तलाशती थी, मैं तो पहले पहुँच जाया करता था लेकिन वो ठीक वक़्त पे आया करती थी, अपने 1st फ़्लोर के कॉरिडोर में महज वो आती जाती दिखती, वैसे तो मैं पूरी डेडिकेशन के साथ उसे देखता था लेकिन जैसे नजदीक आई मैं अपनी नजरें भी ऊपर नहीं उठा पाता था । 
    अब तक बात नहीं हुई थी हमारी, हाँ उसके और हमारे कुछ दोस्त कॉमन थे इस कारण कई बार हम दोनों एक दूसरे के ठीक सामने होते थे और मेरी हरकत से उसने शायद मुझे पहचान भी लिया था , क्यों मैं एगदम रोमांटिक हरकत किया करता था अपनी  नजरों में ,और मेरी नजरें सरासर गलत थी!! 

                          देखो वो बात नहीं कर पाएगा अभी, अजीब सी हरकत कर रहा है वो, उसकी तबियत भी काफी खराब हो गई है , मैंने आरती को फोन पर कहा, अपने दोस्त विशाल और सिंह के सामने....आरती, ये अभी तक महज एक अजनबी थी लेकिन मुझे अंंदाजा नहीं था कि मेरे जीवन में ये अहम किरदार निभाने वाली है। ये एक ऐसी दोस्त रही है जिसे मैं अच्छे और बुरे दोनों परिस्थितयों में फोन कर के खुद को काफी रिलैक्स पाता हूँ, उस कॉलेज के वक़्त भी और आज भी।
      विशाल हमारा टॉपर था और अपना आइंस्टीन भी , उसके डिम्पल ने ना जाने कितने लड़कियों को उसकी ओर आने को मजबूर किया लेकिन मानो उसकी साढ़े साती चल रही हो एन वक़्त पे सभी गायब और हर बार वो अपने गुलाब को तैयार करता था और फिर वो मुरझा जाती थी, उसके स्मार्ट होने का फायदा कम नुकसान अधिक दिख रही थी, कोई यकीन ही नहीं करती थी कि ये सिंगल है और इस यकीन नहीं करने के कारण वो न ही ज्यादा दिन सिंगल रह पाता था और न ही डबल। और सिंह था हमारा हाइपर जॉन , सुनता था पतले लोग बड़े गुस्से वाले होते हैं, जब सिंह से मिला तो यकीन भी हो गया कि ये सच है, ये लड़कियों के मामले में थोड़ा सख्त था, मतलब ऐसा नहीं कि उसके अंदर इमोशन्स नहीं होती थी बस वो ज्यादा रिएक्ट नहीं करना चाहता था और इस रियेक्ट न करने के चक्कर में उसके दिल को काफी नुकसान हुआ , कई बार।

        एक्चुअली काफी दिनों से विशाल और आरती की प्रेम कहानी अधूरी पड़ी थी , मैंने कॉलेज थोड़ा लेट से जॉइन किया था सेकंड काउंसिलिंग में और जब ये मुझे पता चला तो फिर बिना देर किए मैं इस मिशन पर लग गया। अब चुकी आरती और विशाल दोनों के अंदर फीलिंग्स तो पहले से ही थे, जरूरत थी बस एक चिंगारी की और मैंने उसमें पूरी की पूरी पेट्रोल उढ़ेल माचिस लगा दी।
                फोन पर जैसे ही आरती ने सुना कि उसकी तबियत खराब हो गई है, उसने फटाक से हाँ बोल दिया ...मैंने विशाल की ओर देखा तो मानो उसकी खुशी की कोई ठिकाना नहीं थी , मानो इंजीनियरिंग खत्म करने से पहले उसकी प्लेसमेंट हो गई हो। खैर हमारे बैच की पहली प्रेम कहानी सफल हुई। 
                  अकसर होता है कि दूसरे के मामलों में आप बड़ी आसानी से निर्णय दे देते हैं लेकिन अपनी बारी हालत खराब हो जाती है, और जब आपसे बेहतर इंसान कतार में आपसे पहले मौजूद हो तो आपकी नैया मानो की डूबी हुई ही है। 

                   "भाई आज उसे बोल दूँ क्या?" जब भी हमारा दोस्त सिंह पूछता तो मैं उसे अपनी मित्रता निभाते हुए कहता हाँ बोल दो। हाँ अब तक प्रीति के प्रेम में हमारा सिंह काफी गहराई में जा चुका था और ये काफी जल्दी हुआ बिल्कुल फिल्मी अंदाज में।
         अगर सिंह स्ट्रोंगली प्रोपोज़ करता प्रिती को तो शायद वो एक्सेप्ट भी कर लेती , लेकिन सच ये थी कि मैं नहीं चाहता था कि वो प्रीति को जाकर बोले अपनी फीलिंग्स के बारे में, क्यों की कहीं उसकी फीलिंग फुलफिल हुई न तो मेरी फीलिंग कि अबॉर्शन तय थी।

                     ख्वाबों से वापस आकर वक़्त को देेेेखा तो एक बज कर दस मिनट हुए थे और अब तक मैं बस वड़ोदरा स्टेशन पर चक्कर लगाए जा रहा था उम्मीदों की नजर से राह को देखते हुए की शायद एक बार ट्रेन आने से पहले वो मुझे दिख जाए ,क्यों कि शायद ये मुलाकात आखिरी मुलाकात हो लेकिन अब वक़्त किसी की बन्दिश में कहाँ है और फिर ये उम्र, शादी, ये जीवन के सिलसिले अक्सर एक दूसरे को अलग कर देते हैं, लेकिन प्रीति को इतनी रात को देखने की उम्मीद करना भी महज एक ख्वाब सी थी। एक कॉल आई...वो एन्वी थी मेरी फ्रेंड,काफी अच्छी फ्रेंड....।

                
     "उनलोगों को देख रहे हो..." तिवारी ने मुझसे कहा लड़कियों के ग्रुप को दिखाते हुए , तिवारी हमारे ग्रुप का डेयरिंग रोमियो था ये अपने टारगेट को किसी फायर एंड फॉरगेट मिसाइल की तरह लॉन्च करता था, और अंत तक लगा रहता था, 75% एक्यूरेसी के साथ रिजल्ट भी आती थी।  
          जब तिवारी ने मुझ से कहा तो मैंने "पूछा...ये चाईनिज?" तिवारी ने कहा... हाँ , ये नई बैचमेट्स हैं हमारी। मैंने सोचा, चलो अब ज़ेवियर थोड़ा सपनों टाइप वाला ज़ेवियर लग रहा है वरना ये इंजीनियरिंग कॉलेज में सन्नाटा खून चूस लेता। 

      एन्वी बोलो ना... अगर तुम्हें भी प्यार है तो प्रॉब्लम क्या है बोलने में , टाइगर किसी से बात कर रहा था ...
        टाइगर, ये हमारा अरिजीत सिंह था , और एक बेहतरीन विद्यार्थी भी लेकिन ये एक धारा में बहता चला जाता था, वो धारा गटर में ही क्यों न चली जाए... मतलब आप उसे साइको रोमियो बोल सकते हो , हाँ वही रोमियो जो अपने प्रेम के लिए कई हदें पार कर सकता है।  
                जब मैंने अपने दोस्तों से पूछा की ये एन्वी कौन है जिसके शिकार के लिए हमारा टाइगर परेशान हुआ पड़ा है, तो तिवारी ने बताया कि ये वही चाइनीज है कॉलेज वाली... मुझे लगा भाई इतना स्पीड कौन देता है यार , मतलब हद्द हो गई रजिस्ट्रेशन की.... और फिर वैलेंटाइन डे थी, अब आखिर में एन्वी और टाइगर एक दूसरे के वैलेंटाइन बन चुके थे।
                    जैसे जैसे दोस्तों की गर्लफ़्रेंडस बन रही थी वैसे वैसे हमारी मस्तियाँ कम होती जा रही थी लोगों का डायरा और वक्त दोनों सिमट रही थी, शायद अब वो थोड़े ब्युजी और मैचयॉर होने लगे थे...खैर, हमारी मस्ती कम जरूर हुई थी लेकिन खत्म नहीं.... 
                       चलो आज राँची चलते हैं...हम सबों की प्लान बनी और फिर आरती...हाँ वही मिसेज विशाल , मीरा...ये हमारी नई फ्रेंड थी एगदम केयरिंग टाइप , और कई दोस्त हमलोग राँची घूमने निकले और वाकई में वो वक़्त हमारी जीवन के कभी न मिटने वाली प्यारी यादें बन कर रह गई हमेशा के लिए...
       और उस यादें में एक बड़ी तीखी याद शामिल है और तीखापन हमें नापसन्द भी है और पसंद भी। मीरा की एक दोस्त थी आद्रीता, राँची में ही रहती थी , मीरा ने कहा चलो उसके घर चलते हैं , हम सभी उसके घर के नजदीक पहुँचे और हमारी मीरा मैडम हमें बाहर खड़ा कर उसके घर चली गई और बिल्कुल हमारे माथे के ऊपर उसके छत पे जा हम सबों के बारे में आद्रीता को बता रही थी, हमने भी ऊपर झाँक, छत पर खड़ी उसकी फ्रेंड को देखने की कोशिस की लेकिन नाकामयाब रहा। हाँ ,बाद में फ़ोटो देखा मैंने उसका, फिर मुझे लगा नम्बर लेकर आनी चाहिए थी फ़्रेंडज़ोन में ही रह लेता कम से कम।

        राँची से आये हुए करीबन 10 दिन गुजर गए होंगे, मेरे एक होस्टल के दोस्त अभी ने बताया कि सिंह भी आखिर रिलेशनशिप में आ गया नई, मैं थोड़ा शॉक्ड हो गया और लगा कहीं प्रीति तो नहीं? लेकिन ये कभी वैसा बात ही नहीं किया है उससे फिर कैसे सम्भव है , मैंने अभी से पूछा लेकिन किससे ? उसने कहा मीरा से...तुम्हें नहीं पता? और मैं अब डबल शॉक्ड!! क्यों की जिस हिसाब से मेरे दोस्त परफॉर्मेंस दे रहे थे ने उस हिसाब से पूरी कॉलेज की लड़कियाँ मेरी भाभी बन जाती। लेकिन थोड़ा अच्छा लगा कि एक प्रतियोगी अब लाइन में नहीं है।
            परशो खास दिन है, तिवारी की जन्मदिन और इसे एगदम रोमांटिक तरीके से मनाना है ये तिवारी को छोड़ हम सबों ने प्लान किया, सबों ने का मतलब मैं खुद, सिंह, विशाल और टाइगर, और प्लान हुआ कि अपनी फ्रेंड्स यानी लड़कियों को भी बुलाया जाए , और इसमें तय हुआ कि प्रीति को बुलाया जाए हालांकि वो हमारी फ्रेंड लिस्ट में नहीं थी फिर भी सिर्फ इसलिए क्यों कि अब मेरी नजदीकियां जरूरी थी उससे , सारे दोस्तों ने मिलकर खर्च करने की इक्षा जताई ताकि अब मेरी इक्षा पूरी हो सके...अब यूँ ही दोस्त भाई नहीं कहलाता....!!
                     आज रेलवे स्टेशन पर इधर उधर घूम को कॉलेज की बातें याद करना अकल्पनीय सुखद अनुभव थी, वो पहला केक पहला सेलिब्रेशन और पहली लड़की के शामिल होने की एक उम्मीद....!!



आपके कई सवालों के जवाब.... और कहानी के कई नए मोड़ आगले भाग में !!

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मोहब्बत आज कल और हमेशा

Wo kisi aur ki hai ab tak, college story in Hindi- Episode 1 Wo kisi aur ki hai ab tak, college story in Hindi- Episode 1 Reviewed by Story teller on अगस्त 04, 2020 Rating: 5
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