आज दूसरा दीन था और आज ही हमारा ड्रामा भी करना था, ड्रामा हुआ और उसने किया भी लाज़वाब हालांकि मैंने खुद की डूबती नैया को बहुत मुश्किल से बचाया क्यों की मैं हर बार अपनी डायलॉग भूल जा रहा था पर नशीब अच्छा था हमारा की मेरी बारी आते ही मुझे डायलॉग याद भी आ जा रहे थे। अब मैं फ्री था प्यार मोहब्बत के लिए, करीबन रात आठ बजे हम सभी खाना खाने कैंटीन पहुँचे और पता नहीं कैसे पर फरज़ाना भी वहीं थी तब...अब मेरा मुरझाया हुआ डिनर एक रोमांटिक डिनर डेट में तब्दील हो गया, मैं उसकी टेबल की ओर चेहरा कर के पास वाली टेबल पर बैठ गया लेकिन वो मेरी ओर पीठ कर के बैठ गई ,लेकिन कुछ ही देर में वो वापस उठी और मेरी ओर चेहरे कर के बैठ गई तब वाक़ई में मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानो किसी मुरझा रही फूल में किसी ने पानी का फुहारा मार दिया हो और उसका मेरी ओर मुड़कर बैठना किसी फुहारा से भी अधिक था , मेरे दोस्तों को अब तक सब पता चल चुका था और फरज़ाना को भी महसुस हो चुका था मेरे बारे में क्यों की मैं एक भी मौका नहीं छोड़ रहा था अपने बटन वाले फ़ोन से उसकी फ़ोटो खींचने और उसे देखने का, उसका खाना खत्म हुआ और वो हाथ धोने बेसिन की ओर निकल पड़ी, मैं भी फटाक से उठा और बेसिन की ओर चल पड़ा , मैं उसके पास जाऊं तो ठीक लेकिन वो पास आई तो हालत खराब। कैंटीन से वापस हम सभी चले आए, अब तक हमारी नज़रें कई बार एक दूसरे से टकरा चुकी थी और कुछ वक़्त बाद ही सही लेकिन मुझे महसूस हुई की सिर्फ मैं ही नहीं बल्की वी भी मुझे उसी कदर देख रही है जिस तरह से मैं , और ये जानने के बाद मैं खुद को हीरो से कम नहीं समझ रहा था , खाने के बाद हम दो लोग ठंढा पीने एक रेस्त्रां पर चले गए जब वापस आए तो मेरे दोस्त और सीनियर्स काफी सीरियस लगे और मैं उनलोगों को देखकर चिन्ता में पड़ गया क्योंकि वहाँ एक मैं ही था जो ड्रामा के अलावा भी किसी अन्य चीज में लगा था मेरे सीनियर्स जो दोस्त जैसे ही थे उन्होंने मुझसे कहा की ये जो तुम कर रहे हो न वो सर को और दूसरे लोगों को पता चल गया है तुम्हारा शिकायत आया है...बस मैं पड़ गया टेंशन में मेरे दिमाग के चारो ओर कई बातें घूमने लगी मुझे लगा ये पहला ड्रामा टूर कहीं मेरा आखिरी नहीं बन जाए , और मैंने फटाक से निर्णय लिया की अब फरज़ाना से दूरी बनाकर रखना है, मेरे मोबाइल में उसकी जितनी भी फोटोज, वीडियोज थी मैंने सारी मिटा दी। लेकिन कहीं न कहीं मुझे सक हुआ की ये लोग मजाक तो नहीं कर रहे मैंने कई दोस्तों से सच जानने का कोसिस किया पर असफल रहा अंत में मैंने पारंपरिक तरीका अपनाया मेरे सर की एक बेटी थी शैव्या उसे मैंने अपना कसम दिया तो उसने बताया की सर को पता तो है पर कुछ हुआ नहीं है...आज फिर से यकीं हो गया था की सच में हर एक दोस्त कमीना ही होता है...ये सुन मेरी जान में जान आई , अब कोसिस इतनी थी की मैं फरज़ाना से दूर रहूँ क्यों की कहीं ऐसा ना हो मेरी आशिक़ी के चक्कर में मेरे एक्टिंग की ही वॉट लग जाए...लेकिन मेरे दोस्त अलग ही इरादा लेकर चल रहे थे की जितना हो सके मुझे और फरज़ाना को एक साथ रखना है और मुझे ऐसा लग रहा था की ये लोग मुझे एक नागिन के साथ रखने की साजिश कर रहे हों , हालांकि उसका साथ होना मुझे भी बेहद पसंद था और हो भी क्यों ना? रात में हम सभी हॉल चले गए जहाँ प्रोग्राम चल रहा था वहाँ भी मैं अपने आपको रोक नहीं पाया उसे देखने से, पता नहीं क्यों पर वो किसी चांद समान थी मेरे लिए जिसके चारों ओर बस अंधेरा था सिर्फ अंधेरा, मैं कुछ भी देखने की कोसिस करता पर मेरी नज़रों की तलाश उस चाँद से ही सुरु होती थी और उस चाँद पर ही खत्म। ड्रामा खत्म हुई हम सभी वापस वहाँ के नज़ारों को देखने में मशगूल हो गए...करीबन रात के 10-11 बज रहे होंगें , मैं और मेरे सीनियर अरविंद एक साथ बैठे थे फरज़ाना का अरविंद से बात होता था, पर आपलोग दिमाग मत लगाना वो भैया बोलती थी उन्हें...फरज़ाना वहाँ आयी और अरविंद के बगल में बैठ गई और मेरी हालत खराब क्यों की ना अरविंद को छोड़ वहाँ से जा सकता था और ना ही फरज़ाना से बात करने की हिम्मत वो बेचारी खुद भी बड़ी मुश्किल से हिंदी बोलने की कोसिस कर रही थी उसकी एक लाइन अब भी याद है मुझे "मैं यहाँ किसी को फ़ोटो नहीं खींची बस फूल का ली" इसे उसने काफी तोड़ मरोड़ कर कहा था हालांकि मुझे थोड़ा बहुत बांग्ला आती थी तो कुछ खास समस्या नहीं होती थी उसे समझने में। कुछ देर अरविंद और फरज़ाना आपस में बात करते रहे उसकी नज़रें बीच बीच में मेरी ओर मुड़ रही थी लेकिन मैं लगातार उसे देखता जा रहा था इस कारण वो मुझे देखते ही अपनी नज़रें नीचे कर ले रही थी , अब यहाँ मुझे बड़ी खुशी हो रही थी मानो मेरा कोई सपना पूरा गया हो उसके इतने करीब बैठना और सक करने वाला भी कोई नहीं चुकी अरविंद को कुछ खाश पता नहीं था...कुछ देर बाद फरज़ाना की माँ ने उसे बुला लिया और मेरे ख्वाबों का बढ़ता पूल बीच में ही टूट गया फिर भी बेहद खुश था मैं क्यों की उसका यूँ आ कर बैठ जाना मेरी ओर देखने की कोसिस करना मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था।
आज तीसरा और अंतिम दिन था मेरा इस सपनों की दुनियां में , अब तक फरज़ाना और मेरा एक दूसरे को देखने की सिमा इतनी बढ़ चुकी थी को हम दोनों ही मौका ढूंढ रहे थे एक दूसरे से बात करने की लेकिन मैं किसी और के सामने उससे बात नहीं करना चाहता था और इसके कई वजह थे... करीबन दिन के 12-1 बज रहे होंगें मेरे सभी दोस्त हॉल में इवेंट देख रहे थे और मैं अकेला रूम जा रहा था कुछ काम से, जिस रास्ते मैं जा रहा था बिल्कुल उसी रास्ते फरज़ाना किसी लड़की संग मुझे आती दिखी और बस इतना देख मेरी हालत खराब फिर भी मैं बड़ी हिम्मत कर आगे बढ़ रहा था करीब 9-10 कदम दूर थी वो मेरे से और वहीं से उसने तेज आवाज में एक नाम शायद शलिमा जैसा कुछ लेकर कहा "शलिमा आई लव यु" शलिमा तो एक बहाना था असली साजिश तो मैं था वहाँ पर , मैंने फटाक से उसे देखा वो मुस्कुराते हुए मेरी ओर देख रही थी...अब यहाँ मुझे ये समझ में नहीं आ रहा था की मैं खुश होऊं या रोऊँ उसके मूँह से आई लव यु सुनना मैंने सपनों में भी नहीं सोचा था लेकिन उसके बगल वाली लड़की मुझे यमराज वाला फीलिंग दे रही थी मुझे समझ नहीं आ रहा था मैं क्या करूँ ,मैंने फटाक से अपना रास्ता दूसरी ओर मोड़ा और किसी बुल्लेट ट्रेन की गति से वहां से गायब हो गया...यहाँ पर मुझे मेरी फ़िल्म की हीरो तो फरज़ाना लग रही थी जिसने कोसिस की सारी हदें पार कर दी...और मैं बस ख्वाब ही बुनता रहा। शाम तक हमारा फोटोग्राफी सेशन चलता रहा क्यों की जाने से पहले यहाँ की सारी यादों को हम अपने मोबाइल में समेट लेना चाहते थे...जिसकी गठरी मैं आज भी खोल कर उन बीते पलों को याद करता हूँ। रात के करीबन 1 बज रहे होंगे, हम सभी अपने लोग एक बेंच पर बैठे थे जो बगीचे में लगा हुआ था और कुछ लोग खड़े भी थे ...सभी बात कर रहे थे मेरे और फरज़ाना के ही टॉपिक पर क्योंकी सबसे चर्चित यही थी , तभी वहाँ सबको फरज़ाना दिखी जो पास ही अकेले घूम रही थी, मेरे दोस्तों ने फटाक से उसे आवाज दिया "फरज़ाना आओ न यहाँ " मानो मैडम इन्तिज़ार कर रही थी वो भी एक आवाज में चली आई अब वो मेरे जैसा डरपोक तो थी नहीं की भाग जाए, यहाँ तक काफी नहीं हुआ मेरी दोस्त शैव्या ने मेरे बगल में बैठे सीनियर से कहा अरे उठो... बैठने दो न फरज़ाना को ,वो तुरंत उठ गए और कहने लगे अरे हाँ आओ बैठो न, मेरे दोस्त मेरे लिए जो कर रहे थे...मुझे ऐसा लग रहा था मानो मुझे मारने की शाजिश चल रही है...वो मेरे पास आई और उसे बैठाने की सभी प्लानिंग कर ही रहे थे की मैं तुरंत उठ गया और बगल वाले भैया को कहा की चलिए कोल्ड ड्रिंक पीने मैं पिलाऊंगा वैसे जब मेरे जैसे लोग ये कहें मतलब मामला बहुत गंभीर है और मेरे लिए था भी तब...मेरे साथ कोल्डड्रिंक पीने तो कोई नहीं गए पर मुझे रोकने की पुरजोर कोसिस सबने की शायद मेरीलव स्टोरी में मेरे से ज्यादा मेरे दोस्तों को इंटरेस्ट था , मैं अकेले वहाँ से निकल पड़ा हल्की सी फुहारे वाली बारिश में अपनी उस पन्ने की कहानी को अधूरी छोड़ जो शायद दोबारा कभी पूरी नहीं होने वाली थी, शायद तब मैं ये सोच नहीं पाया की दोबारा वो मेरे सामने कभी नहीं बैठने वाली है...उसकी वो हल्की सी मुस्कुराहट को मैं हमेशा के लिए खो देने वाला हूँ...भारत का बंगलादेश के साथ रिस्ते का तो नहीं पता लेकिन इस भारतीय को उस बांग्लादेशी से प्यार हो गया था ऐसा प्यार जिनके बीच सरहद,धर्म,भाषा जैसी कई दीवारें थी जिनको तोड़ प्यार को हासिल कर लेना शायद सही भी नहीं था लोगों की नज़रों में...पर मेरे लिए कोई दीवारें मायने नहीं रखती मायने रखती है तो सिर्फ वो। अगली सुबह 5:30 बजे के आसपास मुझे मेरे टीम वालों ने जगाया और बताया की अभी तुरंत हमें निकलना है...मैं बिल्कुल सन्न था क्यों की मुझे नहीं पता था की ऐसे सुबह ही हमें निकलना है वरना मैं उससे बात तो कर ही लेता और आगे भी बात करने का कोई उपाय भी निकाल लेता...मैं तैयार हुआ और सबके पीछे-पीछे जाने लगा इस उम्मीद में कई बार पीछे मुड़ा की शायद वो मुझे एक बार दिख जाए... आज भी मैं उसे कई बार फेसबुक,इंस्टाग्राम वगैराह में ढूंढता रहता हूँ की शायद वो मुझे एक बार मिल जाए ,
इस बार मैं उसे कहूँगा "आई लव यु" नहीं , बल्कि ये की "क्या तुम मुझसे शादी करोगी"
क्या तुम अपनी चाँद सी रोशनी में मुझे ज़िन्दगी भर अपना सितारा बना साथ रखोगी...
उस अंधेरी आसमान में सिर्फ हम दिनों ही होंगे...
तुम बेपरवाह ही रहना परवाह मैं करूँगा सबकी,
मैं तब भी शायद तुमसे बात न कर पाऊँ पर तुम बेफिक्र होकर तब भी आई लव यु ही कहती रहना...
मैं शायद लोगों का हो जाऊँ पर तुम हमेशा मेरी होकर रहना
फिर मिलकर साथ तोड़ेंगे न इन मजहबी दीवारों को,
तुम अपने अल्लाह को समझा देना मैं समझा दूँगा अपने भगवान को ...
अगर ना माने वो तो अलविदा कर दूँगा मैं अपने गीता,
तुम कर देना न अपने कुरान को...
पर शायद ये सब कहने को मैं काफी लेट हो गया हूँ पाँच शाल हो गए बीते हुए, और शायद उसे ये अंदाजा भी नहीं होगा की मैं उसे अब भी कितना याद करता हूँ उसकी धुंधली सी यादों की परछाई को समेटे हुए, उसकी बेपरवाह होकर कुछ भी कह देने वाली यादों को साथ लिए...उसी अल्लाह उसी भगवान से कई फरियाद किये।
Farzana... when an Indian fall in love with a bangladeshi, सत्य घटना पर आधारित
Reviewed by Hindiyans
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दिसंबर 21, 2018
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