मैं और सारे वक़्त की तरह बस लैपटॉप में अपनी आंख गड़ाए बैठा था और करना भी क्या था जिंदगी में लैपटॉप और उसके अलावा अब शायद कोई था ही नही।
मैं काम में डूबा ही हुआ था कि अचानक से एक जानी पहचानी खुशबू ने मेरा सारा ध्यान लैपटॉप से खिंचकर उसकी ओर कर दिया,
हाँ ये मेरी मंगेतर थी अनुष्का , भीगे बालों में चेहरे में एक छोटी सी मुस्कान लिए किसी पवित्र गंगा सी खड़ी मेरी नज़र बस एकटक उसको देखी ही जा रही थी, जबतक की उसने मुझे टोका नही.....
जनाब मैं कहीं नहीं जा रही, पर हाँ अगर आप थोड़ी देर और करेंगे तो शायद मुझे किचन वापस जाना पड़ेगा इसे गर्म करने के लिए...चाय की ओर इशारा करते हुए उसने कहा।
मैं उसको ये बोल नही पाया कि बस मैं कुछ नही चाहता तुम यूँही इसी सीतल छाँव की तरह हमारे सामने खड़े रहो, मैं पलके भी ना झपकाउं अगर मुझे एहसास हो की पलकें खोलने पे मुझे तुम ना मिलोगी।
"चाय पकड़ो"... उसकी एक और ज़िद भरी आवाज़ ने मुझे पलकें झपकाने और चाय लेने पे मजबूर कर दिया।
"कमबख्त ज़ेहर भी पी लूँ मैं अगर ऐसी सादगी से कहो तो"
"चुप रहो हमें साथ जीना है मरना नहीं" कहकर वो अपने काम में मशगूल हो गयी...
3 शाल पहले कॉलेज के फाइनल ईयर में मिले थे हम तब भी मुझे वो बोली थी "चुप रहो एक सेकंड नही रुकना यहाँ तुम्हारे साथ" दरअसल मैं थोड़ा मजाकिया था और वो शख्त मैंने ग़लती से मजाक कर दिया और मैडम भड़क उठी.
सप्ताह बित गए मैंने शायद ही कोई नुस्खे नहीं अपनाया उसे मनाने के लिए पर सब बेकार ।
सप्ताह बित गए मैंने शायद ही कोई नुस्खे नहीं अपनाया उसे मनाने के लिए पर सब बेकार ।
ठंड़ की मौसम थी दोपहर होने के बावजूद सूर्य की तेज को बादल ने थोड़ा सा ढका हुआ था। कॉलेज के मैदान में वो भी अपने दोस्तों के संग बैठी थी और हम दोस्त एक पत्थर से कैच-कैच खेल रहे थे।
मेरी निगाहें पत्थर से हट कई दफा अनु की ओर जा रहे थे ,नतीजन वो पत्थर गलती से मेरे सिर आ लगा और खून की हल्की रिसाव शुरु हो गई।
वैसे कुछ खाश फर्क नहीं पड़ा मुझे लेकिन दोस्त सब परेशान, मेरे खून को रोकने के लिए जद्दोहद शुरू तभी एक पतली सी आवाज आई
"बेवकूफ हो तुमसब पत्थर खेलने वाली चीज है ... "
ये वही थी जिसे मैं एक सप्ताह से मनाने की कोशिस कर रहा था।
वो अपने बैग से कुछ हैंडीकैप निकाल कर लगाने की तौयारी कर रही थी और मैं उसे बस एक टक बच्चे की तरह देखा जा रहा था मानो मेरे लिए समय थम से गया हो, बस मैं उस खुले बाल को देख रहा था जो हवा से लहरा कर उसके चेहरे पर आ रहे थे और वो परेशान हुए मेरे माथे पर हैंडीकैप लगाने की कोशीस कर रही थी।
आज से पहले एक खरोच आने पर भी मेरी हालत खराब हो जाती थी पर आज मन हो रहा था कि खून बस बहता ही चला जाए क्यों कि खून बेह जाना बेहतर था मेरे लिए उस गुस्सैल चेहरे के दूर चले जाने से...
यूँ समय का थम सा जाना खून की भी परवाह ना करना कहीं प्यार तो नही हो ग़या मुझे...?
घर वापस आने के बाद भी मैं यही सोचता रहा। देर शाम अचानक फ़ोन की घंटी बजी कोई अजनबी नंबर था शायद!!
मैंने उठाया और एक आवाज आई
"सिर कैसी है तुम्हारी?"
ये सुन मेरी सांसे तक थम गई क्यों कि ये वही थी, वही थी जिससे शायद कुछ पल में ही मुझे प्यार हो गया था, शायद अब कुछ पल में ही ज़िन्दगी मुझ से कह रही थी कि ये नहीं तो मैं भी नहीं...
मैंने किसी तरह कहा "हाँ ठीक है थैंक यू"
"और मेडिसिन भी ले लेना ऐसे ही मत सो जाना" उसने कहा!!
मुझे तो पहले ही प्यार हो चुका था लेकिन उसकी हर एक परवाह भरी बातें मुझे प्यार की उस गेहराई में ले जा रही थी जहाँ से शायद मेरा वापस आना नामुमकिन था...."
अनु एम सॉरी" मैंने कहा,
उसका एक हंसता हुआ रिप्लाई आया "हाँ इट्स ओके कल मिलते हैं बाई"ये कह कर उसने फ़ोन काट दिया।
मेरा भी कुछ हाल ऐसा था मानो मैं हिरण हूँ और मुझे आज कस्तूरी मिल गई है...
सुबह जल्दी तैयार हो कॉलेज चला गया दिन भर कैंटीन में बैठा उसका वेट करता रहा और आखिर में फिर से वही लहराती जुल्फें कैंटीन की ओर आती दिखाई दी और मेरी धड़कन रुक सी गयी!!
पर ऐसा क्यों हो रहा है? मैंने खुद से पूछा क्यों कि मैं वेट भी तो उसी का कर रहा था ना।
खुद को खुद से उत्तर मिली " प्यार भी तो पहली बार हुई है ना"
वो आकर मेरे सामने बैठ गयी मानो कितने दिनों से क्लोज हो मेरे, पर जो भी हो मैं खुश था...
उसने पूछा फिर करोगे पत्थर को कैच? मैं मुस्कुराया और कुछ बोल ना सका ।
करीबन बारह दिन बीत गए और अब तक मैं उसे कुछ बोल नहीं पाया ।
लेकिन कब तक शांत रहोगे कुछ दिन में कॉलेज भी खत्म होने वाली है...मैंने खुद को बताया!!
आज मैं बस पूरी तौयारी के साथ गया...वो ग्राउंड में एक जगह बैठे दोस्तों के संग मगन थी मैने बुलाया अनुष्का....
उसने मेरी ओर देखा और बिना कुछ कहे चली आयी...
क्या??? उसने पूछा
मैं कुछ भी नहीं कह सका शिवाय इसके की थैंक यू माफी के लिए और बस वहाँ से भाग आया...।
कई बार कोशीस की पर असफल रहा। वो अकसर अपना खाली वक़्त मेरे साथ बिताती लेकिन फिर भी ना बोल पाया, आखिर खेल भी तो नहीं है ये ,अब मैं तुमसे प्यार करता हूँ कहना कोई आम बात तो नहीं...
पर समय को इसकी फिक्र कहाँ... आज हमारा फेयरवेल था !
कॉलेज में सभी आये पर मेरी नज़रें उसे ढूंढ रही थी जिसे मैं कब का दिल दे चुका था।
आखिर वो आयी और मुझे ऐसा लगा मानो इस गर्म माहौल में एक ठंढी शीतल हवा साथ ले आई हो, जिसे सिर्फ मैं मेहसूस कर सकता था ।
मैं उसके पास जाता उससे पहले लोग उसे घेर लिए, पर आज मैंने कन्फर्म कर लिया था जो होगा सो होगा आज बोल ही देना है ।
थोड़ी देर में वो मेरी नज़रों से ओझल हो गई और मैं फिर परेशान की कहीं मेरी कहानी का अंत यूँ ढूंढते-ढूंढते ना हो जाये।
तभी मेरी एक दोस्त आई और बोली "अनु को खोज रहे हो"?
मैं डर सा गया ..."नहीं तो" मैंने कहा
फिर उसने कहा "सोच लो..."
मैंने कहा "हाँ ढूंढ रहा हूँ" पर तुम्हें कैसे पता?
उसने कहा मुझे सब पता है, तुम चलो बस।
वो मुझे एक कमरे में ले पहुँची जहाँ मानो सिल्क साड़ी में लिपटी एक परी खड़ी हो... वो कोई और नहीं बल्की अनुष्का थी मेरी अनु...
अब डरूँ या खुश होऊं ये समझ नही आया, मुझे बस इतना पता था कि आज इसे बता देना है जो हो जाए।
पर कहीं गुस्सा गई तो मैं सोच ही रहा था कि अनु की आवाज आई ...
वरुण..."
हाँ..., मैंने कहा
कुछ केहना था तुम्हें ?? "नहीं तो" मैंने फिर से जवाब दिया
ठीक है मैं जा रही हूँ बाहर लोग इंतिज़ार कर रहे होंगे "
और वो बाहर की ओर जाने लगी।
मुझे पता था कि अगर आज नहीं तो कभी नहीं और मैं अपने पहले प्यार को ऐसे तो नहीं जाने दे सकता ना।
मैंने आवाज दी अनुष्का...
"हाँ" वो मुड़ कर बोली...
मैंने एक सांस में केह दिया " I LOVE YOU क्या तुम मेरी लाइफ पार्टनर बनोगी? "
कुछ देर वो एकटक देखती रही और फिर उसके आंखों से कुछ नायाब मोती छलक गिरे... मैं कुछ केह पाता इससे पहले उसने कहा...
"क्या तुम हमेशा ऐसे ही रहोगे ..."
ना चाहते हुए भी मेरी आँखों से आंसू छलक उठे औऱ जब वो एक कदम नज़दीक आई तो मैं खुद को उसे गले लगाने से रोक नहीं पाया... बस तब चाहत यही थी कि वक़्त बस थम जाए लम्हें बस ठेहेर जाए....
अनु तुम फेयरवेल के दिन उस रूम में कैसे आई ?
मैं अपनी यादों की दुनियां से वापस आकर अनु से पूछा जो किचन में कुछ काम कर रही थी।
उसने एक मुस्कुराहट के साथ कहा मुकद्दर में मिलना हो तो मिल ही जाते हैं...
और अचानक एक अलार्म की तीखी आवाज़ से मैं जागा, अभी सुबह हो रही थी और खुद को मैं यकीं नहीं दिला पा रहा था कि...वो अनु वो चोट, मेहेज एक सपना थी जो सबकुछ नींद में आई और नींद में चली गयी
मैं अब भी जल्दी ही सोने चला जाता हूँ क्यों कि मेरी माँ भी बचपन में कहा करती थी की परियां अक्सर सपनों में ही आती है...सच भी तो था सपनों में ही तो आई थी वो।
आज भी मैं अपने सपनों की दुनियां में अपनी सपनों की परी को ढूंढता हूँ...। आज भी ये बच्चों वाली उम्मीद करता हूँ कि...
काश कहीं राह में, बादल में छुपी चांदनी की तरह वो मुझे मिल जाये और कहे की कहा था न, मुकद्दर में मिलना लिखा होता है तो मिल ही जाते हैं।।
क्या तुम हमेशा ऐसे ही रहोगे। ...Hindi Love storytelling
Reviewed by Hindiyans
on
अक्तूबर 09, 2018
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