मैं अपने भैया के साथ युथ फेस्टिवल में गया था 1 तारीख को, तीन दिन का इवेंट था वो, मेरा बस एक ही मकसद था कि यहां पर ढेर सारी मस्ती करनी है...जब वहां पहुँच तो भैया ने अपने टीम से मिलवाया कुछ लड़के और लड़कियां तब ड्रामा की रिहर्सल कर रही थी, मैं बस देख रहा था चुकी मुझे भी ड्रामा में इंटरेस्ट थी तो अच्छा लग रहा था, तब सभी व्यस्त भी थे क्यों कि आज ही ड्रामा करना था तो मैं डिस्टर्ब भी नहीं करना चाहता था किसी को प्रैक्टिस के वक़्त।
शाम ढलने लगी मैं काफी उत्सुक था अपने चारों ओर के रंगीले माहौल को देखकर वहाँ कई तरह के कार्यक्रम चल रहे थे । शाम हो चली थी अब तक ड्रामा की रिहर्सल भी खत्म हो चुकी थी जो भैया करवा रहे थे और कई टीम मेंबर्स के साथ लगभग मेरी दोस्ती भी हो गयी थी ...चुकी था भी मैं अजनबी वैसे लड़के तो होते ही हैं भाई टाइप वाले जो एक सिगरेट मात्र शेयर कर देने भर से दोस्ती जीने मरने तक पहुँच जाती है, लेकिन लड़कियों के मामले में वैसा है नहीं क्यों कि उन्हें एक दोस्ती करने से पहले कई पहलुओं के बारे में सोचना पड़ता है... और उसकी वजह हम में से ही कई लोग हैं।
वैसे मुझे फ़ोटो खींचने का काफी सौक है और इसी सौक की वजह से कई लोगों का ध्यान हमारी ओर आकर्षित हुआ वैसे हमारी ओर कहना गलत होगा उनका ध्यान मेरी फोटोज की ओर आकर्षित हुआ, और खासकर लड़कियों की एक बड़ी कमजोरी है फ़ोटो सेशन वो दुश्मनों से भी फ़ोटो खिंचवा सकती है अगर अच्छा फोटोग्राफ़र हुआ तो और मैं तो बस एक अजनबी था।
मैं अपनी फोन की अंतिम सांस रहने तक सबकी फोटोज लेता रहा। वैसे आज रात के करीबन 11 बज चुके थे अब तक ड्रामा भी खत्म हो चुकी थी एक शानदार परफॉर्मेंस के साथ। काफी देर तक हम सभी रुके रहे और बस उस मस्ती भरे माहौल में डूबे रहे फिर भी आप कहीं भी जाओ तो ध्यान किसी न किसी ओर आकर्षित होता ही है... एक वहाँ भी थी अनु जिसकी शालीनता की ओर मेरा झुकाव बढ़ रहा था...उस दिन तो हम सभी रूम पर चले गए अपने अपने मतलब लड़के धर्मशाला में और लड़कियाँ होस्टल।
अगली यानी 2 तारीख की सुबह हम सभी वापस इवेंट ग्राउंड पहुँचे मैंने आते साथ अनु को देखा वो किसी के साथ बात में मशगूल थी अब चुकी यहाँ कोई फ़िल्मी सीन संभव था नहीं कि हवा चलने लगे उसका दुपट्टा मुझ तक उड़ कर आ जाये और पीछे से गिटार की आवाज आने लगे वगैरह...हमारी बातें पिछली रात से ही होनी शुरु हो चुकी थी इसलिए आज समय नहीं लगा दोबारा शुरु करने में , दोपहर को हम चार लोग अनु भी हमारे साथ ही थी, हम घूमने चले गए स्टेज की ओर।
वापस आने के बाद थोड़ी बहुत बातें और ढेर सारी फोटोग्राफी ,क्यों कि हर एक इंसान उन लम्हों को हमेशा के लिए कैद कर लेना चाहता था... क्यों कि फोटोज ही तो होती है जो आपको बुरे से बुरे समय में भी एक अच्छे यादों की दुनियां में झट से ले जाती है ...चुकी अनु भी शामिल थी मेरे मोबाइल वाले कैमरे के आगे एक प्यारी सी स्माइल दिए फ़ोटो क्लिक करवाने के लिए...हालांकि उसे उतना पसंद नहीं था शायद..और वो ज्यादा शामिल भी नहीं हो रही थी, इसलिए मैं रेंडमली उसकी कई फोटोज ले-ले रहा था ,उसे बिना बताए और लेने के बाद हर बार दिखाता, देखने के बाद उसके चेहरे में एक स्माइल के साथ एक सवाल निकल पड़ते थे "ये कब लिए" मैं शायद कुछ अच्छा सा उत्तर नहीं दे पाता था क्यों कि एक तो तब उसकी स्माइल बिल्कुल प्यारी होती और वो तुरंत मेरे हाथ से मोबाइल छीन अपने फोटोज को देखने लगती थी... और मैं उसकी इन हरकतों को देखकर कुछ वक़्त के लिए ही सही बस उस समय में खो जाता था...उसके प्रश्न को अधूरा छोड़ कर , वैसे " मुझे भी काफी अच्छा लगता है किसी को खुशी देकर उसकी खुशी में खुद को खुश रखना"और जब वो इंसान कोई खाश हो तो फिर......!!
अब तक रात हो गयी थी और अब हम सभी लोग आसपास बैठ कर स्टेज शो देख रहे थे ,सभी लोग थोड़े दूर बैठे थे लेकिन मैं और मेरे साथ 3 और लोग एक साथ एक सोफे पर बैठ कर प्रोग्राम देख रहे थे मेरे बिल्कुल बायीं ओर अनु बैठी जिसे मैं बस दो दिन पहले जाना था और उसके बायीं ओर दो और लोग एक उसकी दोस्त और एक मेरा दूसरा भाई जो उसका क्लास मेट भी था। मतलब वो तीनो पुराने दोस्त थे बस मैं नया था। रात बढ़ती गयी और ठंड भी चुकी इस वक़्त रात के करीबन 12-01 बज रहे होंगे और प्रोग्राम अपने जोरों पर था लेकिन भीड़ काफी कम हो चुकी थी... मेरा भाई सो चुका था और मेरे बगल में बैठी अनु को भी हल्की नींद आ रही थी न सोने वाली ज़िद के साथ...हमारे लिए रात के साथ रेस्पांसिब्लिटीज आती है, और मुझे अच्छे से पता था कि मेरे साथ अभी कौन है।
मेरा आधा ध्यान शो की ओर था , और आधा अनु और उसकी दोस्त पर...मैं प्रोग्राम देख ही रहा था कि अनु का सिर मेरे कंधे पर आ टिक गया चुकी वो थोड़ी नींद में भी थी और उसे प्रोग्राम भी देखना था... वैसे ये मेरे लिए नार्मल होता शायद अगर मैं उसे पहले से अच्छी तरह से जनता या फिर शायद ये मेरी मानसिकता थी...मुझे पता था कि ये ये साधारण सी बात है... लेकिन मेरे लिए मेरे कंधों पर सिर्फ उसका सिर नहीं था, उसके साथ था एक विश्वास एक दायित्व...तब मेरे मन में बस एक सवाल दौड़ रही थी कि क्या मैं इस विश्वास के लायक हूँ कि एक अजनबी लड़की जो दो दिन पहले से मुझे जानती है और इस वक़्त इतनी सहजता से मेरे साथ बैठी है... मेरे मन में कई चीजें दौड़ रही थी जिसे कुछ लोग बेवकूफी या पागलपन का नाम दे सकते हैं लेकिन मुझे पता है मैं आज समाज के उस दौर में हूँ जहाँ अपने घर में ही रावण होते है तो फिर बाहरी लोगों पर क्या विश्वास करना।
इन मामलों में मेरी पुरानी आदत है मैं थोड़ा केयरिंग हो जाता हूँ , और उस वक़्त मैं साँस तक तेज गति से नहीं लेना चाह रहा था...सिर्फ इसलिए ताकि अनु को असहज महसूस ना हो...ऐसे भी गलती से कई गलतियां हो जाती है और फिलहाल मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाह रहा था, हाँ शो को एन्जॉय करने के लीये तालियाँ हम सभी बजा रहे थे...कुछ देर बाद मुझे लगा हुआ कि वो थोड़ी असहज महसूस कर रही है, मैंने पूछ लिया "क्या हुआ" उसने बताया कि "आपका जैकेट ठंढा है ,और इस कारण सिर रखते वक़्त उसे ठंढ लग रही थी... अब मैं पड़ गया धर्म संकट में क्यों कि वो मैं ही था जिसका ठंढ से छत्तीश का आंकड़ा चलता है... मतलब मैं दोपहर को भी जैकेट के z+ सिक्योरिटी में खुद को रखता हूँ ,और अभी रात के करीबन 1 बज रहे थे तो जैकेट खोलना मतलब मेरे लिए पाप करना था...लेकिन इस वक़्त मेरा सिर्फ एक ही उद्देस्य था कि इसे जितना हो सके मैं कम्फ़र्टेबल रख सकूँ... मैंने कहा मुझे ठंढ नहीं लग रही मुझे जैकेट खोलना है उसने मना कर दिया मेरे दिमाग ने भी कहा शायद... की ज्यादा तेज बनना सही नहीं है, पर मैंने अंत में अनु से कहा कि जैकेट से मुझे खुद का पैर ढकना है इसलिए मैं खोल रहा हूँ। मैंने जैकेट उतार दिया अब वो कम्फ़र्टेबल थी और मैं ठंढ में था :p
चुकी अगर सच कहूँ तो मुझे ठंढ लग नहीं रही थी क्यों कि ध्यान ही नहीं था मेरा उस ओर...लेकिन हल्की सी भी हवा की सरसराहट मुझे ठंढ का तमाचा मार जा रही थी और मैं तूफान में एक बाज बन आसमान में उड़ने की कोसिस कर रहा था..। काफी देर हम सभी बैठे रहे एक साथ...वो एक ऐसा यादगार पल था मेरे लिए जिसे मैं कभी नहीं भूल पाउँगा, क्यों कि एक बार फिर मुझे महसूस हुआ था कि कर्तव्य होता क्या है एक पुरुष की...क्यों कि पुरुसार्थ हमें जन्म से नहीं मिलता कमाना पड़ता है।
ठंढ का खामयाजा मुझे अगली सुबह मिली जब मैंने अपना गला बैठा हुआ पाया फिर भी आज दोपहर में हम पूरे ग्रुप स्टेज के सामने खुलकर डांस कर रहे थे कभी बाराती डांस तो कभी आदिवासी, लोग इवेंट को देखना छोड़ हम सबों को देख रहे थे और हम खुद में मग्न थे। असली पागलपन तो तब हुआ जब मैं मेरा भाई अनु और उसकी दोस्त थोड़ी देर बाद वापस आये और चारो अकेले पागल जैसे किनारे की ओर जाकर डांस करने लगे...मैं उस लम्हें को जी भी रहा था और ये भी मेरे मन में चल रही थी कि ये लोग कुछ वक्त तक ही मेरे साथ रहने वाले हैं...तब मुझे सही मायने में लग रहा था कि शायद मुझे नहीं आना चाहिए था यहाँ पर , मुझे मिलना ही नहीं चाहिए था इनलोगों से... यही नाचने का पागलपन यही मस्ती की यादें कभी कभी आंखों से अश्क बन कर छलक पड़ते हैं...कुछ ऐसे ही लोगों से मिलने में डर लगता है मुझे, क्यों कि इनके मिलने की खुशी से ज्यादा बिछड़ने में तकलीफ होती है।
आज यानी 3 तारीख अंतिम रात थी वहाँ पर और आज ही हमें निकलना था, रात के करीबन 8 बजे तक हम सभी खुल कर मस्ती किये ...वो भी सबसे आगे जमीन में बैठ कर क्यों कि हम में से किसी को नहीं पता था कि वापस ऐसा मौका कभी मिलने वाला है भी या नहीं... और मुझे पता था कि शायद इनलोगों से मैं दोबारा मिल भी न पाऊँ। कुछ देर बाद हम सभी बस में जाने लगे... अनु दूसरी ओर बैठी थी मैंने उसे अपने बगल वाले खिड़की के पास बैठने के लिए बुलाया वो आयी बैठी और बस खुद में खोई रही... बस में भी संगीत प्रतियोगिता का सिलसिला जारी रहा अनु भी बीच बीच में गाती और फिर अचानक खामोश हो जाती... अंत में बस कॉलेज पहुंच चुकी थी अनु के पिताजी इसे लेने आये थे... पिताजी से मिलने के बाद ये एग्दम बच्ची की तरह उनसे गले जा लगी......आज मैं शायद पहली बार किसी को इस तरह से जान पाया था...किसी के मन की पवित्रता को इतना देखा,महसूस किया था...
वो चली गयी, तब मैंने उससे नज़रें मिलाने की कोशिश भी नहीं कि... शायद इसलिए भी क्यों की मुझे ये नहीं पता था कि इस वक़्त कौन सा एक्सप्रेशन देना है.....
It's easy to make a girl uncomfortable
But difficult to make her comfortable!
Be a man!!
Choose the difficult way!!
एक अजनबी लड़की /A stranger girl - Based on real story!!
Reviewed by Hindiyans
on
दिसंबर 06, 2018
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