(Audio link of the story has been given below)
मैं मेले में झूले के पास खड़ा अपने भाई का इन्तिज़ार कर रहा था जो अभी तुरंत एक गोल गोल चक्कर लगाने वाले झूले में बैठा लुत्फ उठा रहा था मुझे घूमने की कोई खाश सौक थी नहीं तो मैं उस पर चढ़ा भी नहीं , चुकी अब इसकी घूर्णन गति तेज जो चुकी थी तो मेरी नज़रें समान्यतः अपने भाई को तलाश रही थी...झूले ने 2 चक्कर लिए ही थे कि अचानक से मेरी नज़र एक हंसते हुए चेहरे पर पड़ी जो बिल्कुल किसी चांद समान चमक रही थी, जिसके बाल तेज हवा के कारण उड़कर उसके चेहरे पर आ रहे थे ये पल मेरे लिए किसी जादुई पल जैसी थी किसी प्रकृति की एक मनमोहक घटा जैसी जिस पर विश्वाश करना मुश्किल था... बस इतना ही देख पाया था मैं की फिर से वो झूले के दूसरी दिशा में घूम जाने के कारण मेरी नज़रों से ओझल हो गई... लेकिन मेरे दिमाग में बस उसका चेहरा ही घूम रहा था क्यों कि मुझसे ये यकीन हो ही नहीं पा रहा था की क्या सच में कोई इतनी प्यारी भी हो सकती है क्या भगवान ने कोई स्पेशल गैजेट का सहारा लिया था उसे बनाने में मतलब मैं पूरी तरह से बस उसके बारे में ही सोच रहा था अब मेरी नज़रें भाई को तलाशना छोड़ बस उसका पीछा कर रही थी जितनी बार वो मुझे दिख रही थी हर बार उतनी ही गहराई में मैं उसके चेहरे की बनावट में डूबा जा रहा था। बेशक मुझे नही पता कि प्यार क्या होता है लेकिन किसी के बारे में हमेशा सोचते रहना, खुद की नज़रों का बस उसे तलाशता रहना वो भी बस एक झलक पाने के लिए , अगर एक बार पलकें झपकाने का भी मन न करे ये सोच कर की कहीं ऐसा न हो कि पलकें झपकाने पर एक बार उसे देख लेने का मौका मैं खो दूंगा...अगर इन अनुभूतियों को प्यार कहते हैं तो शायद मुझे प्यार हो गया था, हाँ एक पल में ही मुझे उस से प्यार हो गया था , क्यों कि कुछ ऐसा ही हो रहा था तब मेरे साथ औऱ मैं खुद को रोक भी नहीं पा रहा था और इसकी वजह जो भी हो उसका मनमोहक चेहरा या उसकी प्यारी सी हंसी लेकिन मैं खो गया था।
काफी देर तक बस मैं उसे देखता रहा और देखता ही रहा...कुछ ही देर में झूला रुका मैं भाग कर उसके निकलने वाले रास्ते के पास पहुंच गया क्यों कि मैं उसे थोड़ा करीब से देखना चाहता था, जैसा मैंने सोचा था वैसा ही हुआ वो निकलते वक्त मेरे बिल्कुल करीब थी लगभग दो हांथ की दूरी पर लेकिन बीच में एक लोहे की दीवार थी। वो बाहर निकली पर मेरी नज़रें अब भी छुप छुपा कर उसे ही देख रही थी, आखिर अपना आत्म सम्मान भी तो कोई चीज है ना कोई मुझे यूँ देखते हुए देख लेता तो फालतू बेइज्जती थी इसलिए थोड़ा सतर्क भी होना पड़ रहा था.. लेकिन फिर भी मुझे इसकी कोई खाश परवाह नहीं थी ,और मैं इस कारण से उसे देखना तो नहीं छोड़ सकता था, बाहर आकर पता नहीं कैसे उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और वो अपने सहेली संग वहीं रुक बातें करने लगी , वहाँ तक तो ठीक था लेकिन मेरे एग्दम किनारे में खड़े होने के बावजूद वो पास से गुजरने के लिए मेरी ओर आ रही थी...और उसके कदमों की गति के साथ मेरी धड़कन की गति भी बढ़ रही थी...मुझे पता था कि वो साधारणतः पार होगी लेकिन मेरी इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो मुझ से बिल्कुल करीब होकर पार हो औऱ मैं वहीं खड़ा होकर उसे देखता रहूँ !! उसे कुछ खराब तो नहीं महसूस हुआ क्यों की मेरी नज़रें उसे देख तो रही थी लेकिन छुप छुप कर बड़े प्यार से और ये उसे पता चल चुका था अब तक, और कहीं न कहीं इसी वजह से इस ओर से आ भी रही थी...लेकिन तब भी मुझे पता था एग्जाम अच्छा जाने के बावजूद लोग फ़ेल होते हैं। अंततः मैं वहाँ से दूसरी ओर चला गया क्यों कि किसी को देखना अलग है और उसके बिल्कुल सामने खड़े होने की हिम्मत करना अलग , मतलब होता है ना कि चिड़ियाँ घर में बाघ को देखें तो क्यूट नज़र आता है पर वही बाघ सामने आ जाये तो मौत नज़र आता है बस वही हाल मेरा हुआ था, और ये हिम्मत मुझ में नहीं थी ये, मुझे डर नहीं थी किसी चीज की लेकिन पता नहीं क्यों मैं वहाँ से थोड़ी दूर चला गया...थोड़ी देर वो वहीं आसपास रही अब मेरा देखना थोड़ा कम हो चुका था क्यों की उसकी निगाहें भी मेरी निगरानी कर रही थी...औऱ ये बातें मुझे अच्छी भी लग रही थी और खराब भी अच्छी इसलिए कि "वाह वो मुझे देख रही है" और खराब इसलिए कि "छि... वो मुझे देख रही है अब मैं उसे कैसे देखूं" क्योंकी वो कोई और होंगे जिन्हें प्यार से डर नहीं लगता होगा पर मुझे तो बहुत लगता है ।
मुझे एक स्टॉल के पास जाना पड़ा क्यों की भाई आइसक्रीम ले रहा था लेने के बाद मैं वापस उसे देखने के लिए मुड़ा वो वहाँ नहीं थी मेरी नज़रें पागल हुई उसे चारों ओर ढूंढ रही थी लेकिन वो आसपास कहीं नहीं थी , कहीं भी नहीं , एक पल को ऐसा लगा मानो मैं एक बच्चा हूँ और मैंने किसी प्यारी सी तितली को खो दिया है जो बेहद खूबसूरत थी । हाँथ में मीठी आइसक्रीम लिये मैं उस मीठे चेहरे की तलाश किये जा रहा था , वक़्त के साथ आइसक्रीम भी पिघल रही थी और उसके मिलने की उम्मीदें भी... घर आते वक़्त रास्ते में भी मेरी नज़रों में उसका चेहरा और उसकी प्यारी सी मंत्रमुग्ध कर देने वाली हंसी ही गूंज रही थी , आखिर कर मैं घर को आ गया और मेरा मेले वाला प्यार मेला में ही छूट गया।
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क्या तुम हमेेशा ऐसे ही रहोगे ?
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Pyar pahli najar ki kahani / love at first sight - Based on real story.
Reviewed by Hindiyans
on
नवंबर 22, 2018
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