ब्लॉग 1 - अर्ध रात्रि में घर के कमी की अहसास। Blog in Hindi

A boy watching stars
कुछ बेहद बुरे सपनें के साथ आज आधी रात को ही नींद खुल गए , मोबाइल में देखा तो डेढ़ बज रहे थे हालांकि ये तो हमारे सोने का वक़्त होता है लेकिन आज करीबन नौ बजे ही सो गया पता नहीं क्यों। बुरा ख्वाब माँ के बारे में थी तो बड़ी इच्छा ही रही थी उनसे एक बार बात कर लेने की लेकिन इतनी रात को उन्हें परेशान करना ठीक नहीं, बेवक़्त मेरा कॉल मात्र जाने से उनकी हालत खराब हो जाती है कि कहीं मुझे कुछ हुआ तो नहीं अब माँ ऐसी ही तो होती है ना।

                     बड़ा होना, जिम्मेदारियां सम्भालना और माँ-पिता से सलाह लेते लेते कब सलाह देने वाला बन गया ये सब कुछ पता ही नहीं चला। करीबन नौ वर्ष का था मैं जब माँ से अलग रहना शुरू किया था पिता जी के साथ दसवीं के बाद पिता जी से भी अलग रहने लग गया और जीवन की ज़रूरतों ने मुझे न जाने कितने राहों का हमसफ़र बनाया , कइयों में ठोकर मिले तो कइयों में सुकून और जब आखिर कर कहीं रुका तो लगा कि मंजिल तो हमारी ये है ही नहीं, उसे तो हम बचपन में ही गाँव में छोड़ निकल आये हैं इन शहरों में जहाँ स्वार्थ है, जहाँ दिखावा है, जहाँ इंसानियत कि नहीं काबिलियत की कद्र होती है। 

                   जब माँ के पास था तो बचपन में कई ख्वाइशें होती थी कि बड़े होंगे तो ये करेंगे, वो करेंगे यहाँ जाएंगे, वहाँ जाएंगे... आज हर एक त्योहार में बस दो ही ख्याल आते हैं कि माँ और दोस्तों के पास जाते तो बड़ा अच्छा होता, लेकिन ख्वाइशें तो बचपन में पूरी होती थी , जब से जरूरतों ने हाथ थामा है तबसे ख्वाइशों को नजरअंदाज करने लगे हैं हम। 

Man at night

                 नींद खुलने के बाद कई बार कोशिश किया मैंने आंखें बंद कर सोने की लेकिन पता नहीं क्यों हो नहीं पाया और ये पहली दफा हो रहा है मेरे साथ, घर में होता तो मेरे साथ माँ जाग चुकी होती इस बात की चिंता में की मुझे नींद क्यों नहीं आ रही। याद है मुझे अब भी तब करीबन 7-8 वर्ष का रहा हूँगा मैं , 50 रुपये थे घर के जिसे मैं स्कूल लेकर चला गया था , तब यानी करीबन 2003-4 में 50 रुपये की अपनी अहमियत थी, तब आटा की कीमत 8-10 रुपये के करीब थे जितना मुझे याद है और उस वक़्त मैंने वो 50 रुपये गुम कर दिए थे , सही मायने में किसी ने चोरी कर लिए थे और इस बात को लेकर जितना बेहतरीन ढंग से हो सकता था मेरी पिटाई हुई थी। हालांकि अब याद करने पे मुझे गुस्सा बहुत आता है लेकिन तब की परिस्थितियों के बारे में सोचने पर लगता है कि तब उस 50 की अहमियत अभी के 5000 से भी अधिक थी और जब एक - एक रुपये के लिए जान लगाया जा रहा हो तो 50 जाने की तकलीफ तो होगी ही।

                हर मिडिल क्लास लड़के की कहानी एक सी होती है, ख्वाब को तलाशने घर से निकलते हैं और फिर घर जाना ही एक ख्वाब बन रह जाता है । हमारी भी है कि घर जा भले न रह पाऊँ लेकिन घर वालों के साथ रहूँ हमेशा, हमेशा।
ब्लॉग 1 - अर्ध रात्रि में घर के कमी की अहसास। Blog in Hindi ब्लॉग 1 - अर्ध रात्रि में घर के कमी की अहसास। Blog in Hindi Reviewed by Story teller on जनवरी 24, 2022 Rating: 5
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