Mansarovar 3- Meeting of Anu and Pintu. Short story in hindi with moral
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अनु अपने गाँव "जाइरो" में काफी खुश थी, भले ही वहाँ जंगली जानवरों की हुड़दंग होती थी लेकिन फिर भी अनु और इसके परिवार सभी वहाँ उस परिस्थिति में रहना सिख चुके थे।
एक दिन अनु के पिताजी शाम को काम की तलाश कर के वापस लौटे। सभी साथ खाना खाने बैठे थे लेकिन अनु के पिताजी के चेहरे पर मायूषी साफ झलक रही थी, अनु इसे समझ रही थी लेकिन उसे ये समझ नहीं आ रही थी कि वो अपने पिताजी से कैसे पूछे।
अनु के पिताजी ने रुआंसे आवाज में बोले की मुझे अम्बिकापुर में काम मिली है। अब हमें वहीं जाकर काम करनी पड़ेगी, जाइरो में जानवरों के सुरक्षा के नजरिये से मानसरोवर राज्य की महारानी ने कई कामों पर प्रतिबंध लगा रखी है और इसी कारण यहाँ काम की भी काफी कमी हो गई है। मैंने अपने मित्र से सम्पर्क किया तो उसने अम्बिकापुर में एक काम दिलाने का बात कह कर वहाँ बुलाया है।
अनु और उसके पूरे परिवार काफी दुखी थे क्यों कि अब उन्हें अलग होना पड़ रहा था। अनु के माता और पिता ने मिलकर निर्णय लिया कि अनु की माँ और आर्य यहीं "जाइरो" में रहकर अपने घर की देखभाल करेंगे और अनु अपने पिता के साथ अम्बिकापुर में रहेगी।
अनु को ये सब जानकर काफी रोना आ रहा था उसकी माँ ने उसे समझा बुझा कर चुप करवाया और अनु को खुश करने के लिए उसे अपने साथ एरी यानी उसकी पालतू बंदरिया को भी साथ ले जाने के लिए कहा। ये सुन कर अनु के चेहरे पर उदासी की लकीरें तुरंत हट गई और मुस्कुरा उठी।
आखिर अम्बिकापुर जाने की वक़्त आ गई, जाते वक्त अनु अपने माँ को देख कर रो पड़ी , और अनु को रोते देख इसकी माँ के भी आँसू निकल पड़े, आखिर कब तक वो अपने आंसुओं को छुपा पाती।
"अनु चलो अब, हमें जल्दी निकलना है वरना अम्बिकापुर पहुँचने में शाम हो जाएगी" अनु के पिताजी अपने टांगे गाड़ी पर बैठे हुए अनु से कहा।
"तुरंत आती हूँ पिताजी" अनु ये कहकर जल्दी से अपने भाई आर्य के पास चली गई।
आर्य...अनु ने अपने भाई को आवाज दी जो एक कोने में बैठ हुआ रो रहा था। अपने दीदी के बुलाने के बावजूद आर्य नहीं आया तब अनु उसके पास जाकर उसे अपने हाथ से बनाई हुई एक प्यारी सी टोपी दि और बोली कि मैं जल्दी ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।
अनु.... पिताजी ने दोबारा आवाज दी।
अनु अब जल्दी से बाहर जाकर अपने माँ के पैर को छू कर आशीर्वाद ली और टाँगे गाड़ी पर बैठ अम्बिकापुर के लिए निकल पड़ी।
पिंटू अम्बिकापुर यानी अपने गाँव में अपने मित्र चार्ली(घोड़ा) पर बैठ कर सवारी कर रहा था, यही काम थी जो अब पिंटू को सबसे प्यारा था । करीबन शाम के 6 बज रहे होंगे पिंटू ने सोचा कि क्यों न सामने नदी के चक्कर लगा कर आया जाए, चार्ली को भी हरी-हरी घांस खाने को मिल जाएगी और मैं भी थोड़ा टहल लूंगा। यही सोच कर पिंटू और चार्ली घर के समीप वाले नदी के लिए निकल पड़े।
चार्ली वहाँ घांस चर रहा था और पिंटू वहीं आराम से बैठ गया। तभी उसको बगल से किसी लड़की के रोने की आवाज आई। पिंटू को रहा नहीं गया और उसने तुरंत अपनी धनुष पर बाण चढ़ाई और आवाज की ओर बढ़ पड़ा।
वो रो रही लड़की अनु थी, और उसके साथ उसके पिताजी बैठे थे जो उसे शांत कराने की कोशश कर रहे थे।
पिंटू ने पूछा, "आपलोग कौन हैं और क्यों रो रहे हैं?"
अनु के पिताजी ने बताया "बेटा हम "जाइरो गाँव" के रहने वाले हैं, यहाँ काम की तलाश में आये थे, लेकिन जिसने बुलाया अब वो अपनी बात से मुकर गया है। अब हमारे पास न अम्बिकापुर में रहने की जगह है और ना ही कुछ खाने की , हमें समझ नहीं आ रही कि हम क्या करें।
पिंटू ने कहा कि "बस इतनी सी बात, चलिए मैं आपलोगों के रहने और खाने की इंतिज़ाम कर देता हूँ और बात रही काम की तो एक-दो दिन में इसकी भी उपाय हो जाएगी। " अनु और उसके पिताजी ये सुन काफी खुश हुए।
पिंटू उन दोनों को अपने घर लेकर चला गया और दादी को सारी बात बताई। दादी ने तुरंत गर्मा-गर्म खाना उन लोगों को परोशी और बोली कि हमारा एक कमरा खाली ही रहता है आपलोग आराम से वहाँ रहिये, कहीं और रूम तलाशने की आवश्यकता नहीं है।
पिंटू एरी को देखकर काफी खुश था , वो एरी को अपने गोद में लेना चाह रहा था लेकिन वो आ नहीं रही थी, हाँ वो उछल कर चार्ली के पीठ पर जरूर चढ़ जाया करती थी।
अगली सुबह पिंटू ने अनु के पिताजी से कहा कि मैंने इस गाँव के एक हलवाई से बात की है उसे मदद करने के लिए आदमी की तलाश है , आगर आप चाहें तो आराम से वहाँ काम कर सकते हैं।
अनु के पिताजी के आंखों से खुशी के आँसू निकल पड़े और अनु भी खुशी ओ मारे झूम पड़ी।
अब अनु के पिताजी हलवाई के यहाँ प्रतिदिन काम करने जाया करते थे और अनु भी अब पिंटू के साथ घुड़सवारी करती और बीच बीच में कान्हनवन जाते।
एक दिन अनु,एरी,चार्ली और पिंटू कान्हनवन घूमने के लिए गए। पिंटू को पता चल चुका था कि यहाँ के फलों में विष नहीं है वो उसे खा सकता है इसलिए वो सामने दिख रहे आम के पेड़ पर चढ़ कर आम तोड़ने लगा।
तभी पिंटू को सामने की डाल पर एक सांप दिखा जो धीरे धीरे पिंटू की ओर बढ़ रहा था, अब पिंटू को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे और क्या न करे। अब सांप पिंटू के बिल्कुल नजदीक पहुंच चुका था और किसी भी पल उसे काट सकता था। तभी सटाक से एक चाकू सांप के पीठ में जा घुसी, जब पिंटू ने नीचे देखा तो उसे पता चला कि ये चाकी अनु ने चलाई थी। अब पिंटू की जान में जान आई।
पेड़ से नीचे उतरकर पिंटू ने अनु को शुक्रिया कहा तो अनु ने कहा कि
"शुक्रिया तो मुझे तुम्हारा कहना चाहिए जो तुमने मेरे और मेरे पिताजी की मदद की। मैं तुम्हारे लीये कितना भी कर लूँ लेकिन उस अहसान का बदला कभी नहीं चुका सकती।"
पिंटू ने तुरंत बोला कि "दोस्तों के मदद को अहसान नहीं समझना चाहिए और अब हम सभी दोस्त हैं तो फिर अहसान की तो कोई बात ही नहीं है।"
सभी थैले में जंगल से कुछ फल लिए खुशी खुशी वापस घर को चल दिये।
Moral of the story- किसी भी मित्र पर आँख बंद कर के भरोषा करना सही नहीं होती है।
और जरूरतमंद की हमेशा मदद करे, क्यों कि आप जैसा करेंगे वैसा ही पाएंगे।
ये थी आपकी Mansarovar 3- Meeting of Anu and Pintu. Moral Short story in Hindi for kids. की भाग 3 की कहानी।
Mansarovar 4 में आपको जल्द ही एक नए योद्धा से मुलाक़ात होगी।
बनें रहें हमारे साथ और पढ़ते रहें www.hindiyans.com
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Mansarovar 3- अनु और पिंटू की मुलाक़ात. Short story in Hindi with moral.
Reviewed by Story teller
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अक्तूबर 04, 2020
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