तो ये है महिषाशुर वध की पूरी कहानी? दुर्गा के नौ रूप के बारे में सभी जानकारी

Durga Puja 2020 kab hai? दुर्गा पूजा के बारे में सभी जानकारी
Durgapuja 2020
Image credit- Getty images

Durga Puja यूँ तो कहने को ये एक त्योहार है लेकिन जो श्रद्धा हिंदुस्तानियों और इस त्योहार को जानने वालों के दिल में इसके प्रति है वो किसी भी रूप में साधारण नहीं दिखती।

           आज पिताजी की फोन आई और उन्होंने कहा कि कपड़ा लेलो मैं पैसे भेज देता हूँ तो मैंने मना कर दिया शायद इसलिए कि अब थोड़ा बड़ा हो गया हूँ। लेकिन मुझे याद है बचपन में मैं दुर्गा पूजा के वक़्त ताक लगाए रहता था कि कब पिताजी की बोनस आये और वो हमें खरीददारी के लिए लेकर जाएं, तब मॉल नहीं जाते थे हम , दुकान जाया करते थे और दुकानदार से ऐसा जीन्स माँगा करते थे जिसमें ढेर सारी जेबें हो ताकि सबों में हम पैसे रख सकें और वैसे भी ज्यादा पॉकेट है तो थोड़ी Stylish भी लगेगी।

Durga puja wallpaper

                     लेकिन बड़े होने के साथ साथ अब ख्वाइश और उन दुकानों की अहमियत बदल गई है। जब से कपड़े ऑनलाइन मिलने लगे हैं तब से बच्चे अपने पिता की साथ जाकर कपड़े खरीदने वाली आनंद कहाँ ले पाते हैं। 

       भले ही खरीददारी की तरीका बदल गई है लेकिन जो सम्मान जो श्रद्धा इस Durga Puja के लिए कल थी वो आज भी है और बेशक हमेशा रहेगी।


Durga puja kab hai ? 

दुर्गा पूजा प्रत्येक वर्ष आश्विन में होती है जो कि सितम्बर या अक्टूबर में आती है। उसी के अनुसार इस बार Durga puja 2020, 17 अक्टूबर से शुरू हो रही है और 26 अक्टुबर को खत्म है। यानी 25 अक्टूबर को नवमी और 26 को दशमी है।
               आपको जानकारी हेतु बता दूँ की 17 अक्टूबर को आश्विन शुक्ल प्रतिपदा है और साथ ही तुला सक्रांति भी रात 9:14 में है।

Durga puja ke bare me detail History- 

Durga puja 2020, mahishashur statue

कहा जाता है कि महिषाशुर को भगवान ब्रह्मा की वर्दान मिली थी कि उसे कोई पुरुष कभी नहीं मार सकता चाहे वो असुर हो या देवता और महिषाशुर स्वयं इतना बलसाली था कि बिना वर्दान के भी उसे हराना लगभग असंभव थी। लेकिन जब उसे वरदान तब उसने और भी त्राहिमाम मचाना शुरू कर दिया क्यों कि अब उसे पूरा विश्वास था कि उसे अब कोई नहीं हरा सकता।
              जब महिषासुर का आतंक बढ़ने लगा तब देवों ने उस से युद्ध करने की ठानी और इंद्रदेव की अगुवाई में वो महिषाशुर से युद्ध करने निकले । लेकिन अंततः देवों को हार का सामना करना पड़ा क्यों कि ये असम्भव थी कि भगवान ब्रह्मा के आशीर्वाद के विरुद्ध कोई कार्य हो पाए।
             अंत में सभी देवों ने मिलकर अपनी शक्तियों को मिश्रित कर एक महादेवी की संरचना की जिसे Goddess Durga / Maa Durga कहा जाता है। माँ दुर्गा को सभी देवों ने अपने सस्त्र दिए और माँ दुर्गा महिषाशुर से युद्ध करने को चली गई।
               महिषाशुर के पास रूप बदलने की विशेष शक्ति थी और जब माँ दुर्गा के साथ इसकी युद्ध हो रही थी तो महिषाशुर अपने कई रूपों को बदल कर माँ को विचलित कर रहा था। 
                  करीबन 15 दिनों तक युद्ध चलने के बाद जब महिषाशुर ने भैंस का रूप धारण किया तब Maa Durga ने अपने त्रिशूल से महिषाशुर का वध कर दिया। और सबों को इस दानव से मुक्ति मिली।
                तब से इसी महिषाशुर के वध की खुशी में Durga Puja मनाया जाने लगा। और तब से ही माँ दुर्गा को Mahishashurmardani कहा जाने लगा।

कब की थी Lord Durga, Mahishashur का वध ?

इसकी प्रमाणित तिथि की अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है लेकिन अगर पौराणिक किताब मार्कण्डेय पुराण के अनुसार महाऋषि मेधा, राजा सुरथ को माँ दुर्गा की कथा सुनाये थे द्वितीय मानवतार में। अब द्वितीय मानवतार की बात की जाए तो विष्णु पुराण के अनुसार ये करीबन 1.2 बिलियन वर्ष पूर्व हुई थी। यानी माँ दुर्गा की कथा को अगर इतने पहले सुनाई गई थी तो सोचिये की ये घटना कब की रही होगी। 
             कहा जाता है कि ये घटना बिलियन्स वर्ष पूर्व कर्नाटक क्षेत्र में हुई थी। कितने बिलियन्स ये कहना मुश्किल है।
        अगर नजदीकी इतिहास की बात करें तो 11वीं से 12वीं शताब्दी के बीच जैन धर्म की किताब Yasatilaka जो कि सोमदेव के द्वारा रचित है में माँ दुर्गा द्वारा महिषाशुर के वध की बात की गई है।
               इसी प्रकार ऋग्वेद एवं अथर्ववेद सहित कई वेदों में इस वीरता की सौर्य गाथा की जिक्र है। जब ईश्वर सबों को संदेश दिए हैं कि बुराई कितना भी प्रचंड हो उसकी अंत निश्चित है।

कैसे की जाती है Durga Puja ?

Ekadashi-
GODDESS SHAILAPUTRI

इसकी शुरुआत एकादशी से होती है, उसी दिन मंदिरों में कलस्थापन होती है और Durga Puja शुरू होती है। एकादशी से लेकर प्रत्येक दिन मंदिरों में श्रद्धालु सुबह शाम सांझा दिखाने यानी अगरबत्ती जलाने जाते हैं।

एकादशी को खासकर माँ शैलपुत्री जिनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरी हाथ में कमल की फूल होती है। इन्हें दुर्गा की प्रथम रूप भी कहा जाता है जो पर्वतों से निकली हैं।
माता पार्वती को भी इनका स्वरूप समझा जाता है।
इस दिन श्रद्धालु माँ के चरणों में घी अर्पण करते हैं, मान्यता है कि ये लोगों को निरोग करती है।

मंत्रॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्ये नम:


Dvadashi-
द्वित्य दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है, इनके एक हाथ में रुद्राक्ष माला और दूसरी हाथ में पवित्र कमण्डल होती है।
            मान्यता है कि ये माँ पार्वती की स्वरूप हैं जब वो भगवान शिव की तपस्या कर रही होती हैं।
इस दिन श्रद्धालु माता को चढ़ावा में मीठा देते हैं, मान्यता है कि इससे परिवार के सदस्यों की जीवन बढ़ती है।

मंत्रॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:


Tritya

Durga puja
तृतीय यानी कि तीसरा दिन, इस दिन माता चन्द्रघण्टा की पूजा की जाती है, इनके जटाओं में चंद्रमा होती है इसलिए इन्हें सम्बंधित नाम से सम्बोधित किया जाता है।
   ये दस भुजाओं वाली माता बाघ पर सवार होकर आती हैं और हर एक पापियों , दोषियों की संहार करती हैं।
भक्त इन्हें चढ़ावा में खीर देते हैं,कहा जाता है कि माँ सारे कष्टों को हर लेती हैं।

मंत्रॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघण्टायै नम:


Chaturthi
Durga puja

इस दिन भक्त माँ कुष्मांडा की पूजा करते हैं। जिनके नाम तीन शब्दों के विच्छेद से बना है।
1- कु अर्थात छोटा, 2- ऊष्मा अर्थात आग, अमांडा अर्थात बीज अथवा अंडा।
जिन सबों का शाब्दिक अर्थ होती है सृष्टि की निर्माता।
इस दिन भक्त माँ कुष्मांडा को पुआ चढ़ाते हैं, मान्यता है कि इससे निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है।
मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कुशमुंडायै नम:


Panchami
Durga Puja 2020

पंचमी अर्थात पाँचवां दिन, इस दिन माँ स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता चार भुजाओं वाली होती है, इनके दो हाथों में कमल पुष्प और अन्य दो हाथों में घण्टी और कमंडल शोभती है। इनके गोदी में भगवान कार्तिकेय भी दिखते हैं जिस कारण कार्तिकेय को स्कंदा भी कहा जाता है।
श्रद्धालु इन्हें चढ़ावा में केला चढाते हैं। माना जाता है कि वे देवी लोगों को खुशी और मोक्ष देती हैं।
मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:


Shashthi
Durga puja 2020 kolkata
षष्ठी, अर्थात त्योहार का छठा दिन। इस दिन थोड़ी खास होती है, जो श्रद्धालु पूजा पर बैठते हैं वो माता बेलभरणी को न्योता देने एक खास बेल के वृक्ष के पास जाते हैं,उस बेल के पेड़ के किसी एक टहनी में दो जुड़वां बेल होनी चाहिए। माली पारम्परिक सभ्यता के अनुसार नव वस्त्र धारण कर के उस बेल को तोड़ता है और फिर उसकी पूजा अर्चना की जाती है।
                  इस दिन माता कात्यायनी की पूजा होती है, शेर पर सवार हाथों में तलवार धारण किये ये देवी शक्ति सबसे रौद्र मानी जाती है ।
          इन्हें चढ़ावे में मधु चढाई जाती है, कहा जाता है कि ये सारे दुख, संकट की हरण कर मोक्ष देती हैं।
मंत्र- ॐ क्रीं कत्यायनी क्रीं नम:


Saptami
Durga Puja
सप्तमी अर्थात सांतवीं दिन। आज से मुख्य पूजा आरम्भ होती है । आज तक देवी एवं अन्य भगवानों के प्रतिमाओं के चेहरे और कपड़े ढके होते हैं, और ये कपड़े आज के ही दिन खुलते हैं और सभी श्रद्धालु प्रतिमाओं के दर्शन करते हैं।
       आज के दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती है, इनकी सवारी गधा होता है। इस देवी के चार हाथ होते हैं जिनमें वो त्रिशूल, तलवार और फंदा को रखी होती हैं।
           कहा जाता है कि दानवों के संहार के लिए ये अपने रूप, रंग की त्याग कर ली होती हैं। इनके माथे पर त्रिनेत्र होता है जिसमें समस्त संसार मौजूद है।
             आज श्रद्धालु नजदीकी तलाब अथवा नदी से जल उठाकर पूरे धूम धाम से मन्दिर में आकर चढाते हैं।
प्रसाद के रूप में श्रद्धालु गुड़ चढ़ाते हैं, माना जाता है कि माँ भक्तों को सारे कष्टों से मुक्त करती हैं।
मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:


Ashtami
Durga puja 2020 Kolkata

अष्टमी यानी कि त्योहार के आठवें दिन देवी के आठवें स्वारूप महागौरी की पूजा की जाती है। ये देवी सफेद हाथी अथवा सांढ़ पर सवार रहती हैं, इनके एक हाथों में त्रिशूल और दूसरी हाथों में डमरू होती है।
       श्रद्धालु इन्हें प्रसाद के रूप में नारियल चढ़ाते हैं कहा जाता है कि देवी हर बाधाओं को हर, हर कार्यों को सम्पन्न करती हैं।
मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौरियै नम:


Mahanavmi
Durga Puja

इस दिन महानवमी को माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। कमल पर विराजमान इस देवी की चार भुजाएं होती है जिनमें वो गदा,चक्र,कमल और किताब को थामे होती हैं।
            भक्त इन्हें तिल के दाने सहित अन्य प्रसाद अर्पित करते हैं। कहा जाता है कि ये देवी सारे अमंगल कार्यों को भी मंगल कर देती हैं।
मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्रीयै नमः
                आज की दिन बिल्कुल हर्षभरी होती है, हर ओर प्रतिमाएं चमक रही होती है, पंडाल में रंग बिरंगी रोशनियां सराबोर होती हैं।


Dashmi
Durga puja 2020 kolkata
दशमी को Durga puja की आखिरी दिन होती है। आज सभी श्रद्धालु पूरी श्रद्धा से पूजा अर्चना करते हैं और अपनी मनोकामना के पूर्ति की कामना करते हैं।

इसके बाद अगले या जिस दिन शुभ मुहर्त हो उस दिन माँ की प्रतिमा को विसर्जित कर दी जाती है। 

आप भले ही कहीं रहें,किसी भी शहर में, किसी भी देश में लेकिन अपनी इस संस्कृति इस पूजा से दूर नहीं जा पाएंगे।


Durga puja at Kolkata

Durgapuja 2020

वैसे तो दुर्गा पूजा पूरे भारत में परम् विख्यात है लेकिन Durga Puja आते ही सबके जहन में Bengal घूमने लग जाती है , और खासकर Kolkata की कलाकृति मायने रखती है। वैसे तो कई कहानियाँ हैं Kolkata की जिसे शब्दों में पिरोया जाना काफी मुश्किल है चाहे वो अष्टमी में बंगालियों की माँ दुर्गा को पुष्प अर्पण हो या फिर वो कुमारी पूजा जहाँ छोटी छोटी बालिकाएं को दुर्गा की स्वरूप आन आरती लगाई जाती है। 
Durga Puja 2020

                लेकिन एक चीज है जो बेहद भावविभोर कर देने वाली होती है , और वो है Kolkata में maa Durga की संध्या आरती पूरे नौ दिन तक चलने वाले उत्सव के किसी एक भी दिन अगर आप पहुँच जाएं तो अगले दिन खुद को वहाँ जाने से रोक नहीं पाएंगे।
             वहाँ के पारम्परिक परिधानों में युवक और युवतियाँ उस पूजा के माहौल को और भी सजा देते हैं। वैसे भी उस दुर्गा पूजा में बंगालियों की लाल और सफेद रंग के मेल से बनी साड़ियों की कोई मेल नहीं है।
                      आओ जब भी कोलकाता जाएं तो वहाँ सिंदूर खेला,धुनुची नृत्य को देखना ना भूलूँ, ये सब पौराणिक कथा है जिसे Kolkata ने ज़िंदा रखा है।



                         

             






तो ये है महिषाशुर वध की पूरी कहानी? दुर्गा के नौ रूप के बारे में सभी जानकारी तो ये है महिषाशुर वध की पूरी कहानी? दुर्गा के नौ रूप के बारे में सभी जानकारी Reviewed by Story teller on अक्तूबर 05, 2020 Rating: 5
Blogger द्वारा संचालित.