Poetry about love in Hindi.एक द्वंद है मेरे अंदर जो तुझसे शुरू है।

Poetry about love in Hindi

एक द्वंद है मेरे अंदर जो तुझसे शुरू है ,
द्वंद कुछ यूँ है कि,इन दिनों सब तुमसे शुरू क्यों है?
जो शुरू है तरंग हृदय में उसका अंत क्यों नहीं?
गर तुम बीन हो भी जाये अंत तो सुकूँ क्यों नहीं है?

क्यों हर अवधारणा में तुम, क्यों तुम बिन किसी 
अवधारणा के गढ़ने में जुनूँ नहीं है,
गर तुम हो तो प्रज्वलित सी ये नगरी अंधेर भी
तुम बिन ये जगमग शहर भी अंधेर क्यों है?

अब तुम ही बताओ,क्यों बेलक्ष्य हो भटक रही
इक्षा ये मेरी,
जब तुम आखिर में मौजूद मेरी मंजिल नहीं है
क्यों बेवजह ढूंढें कन्हैया, वृंदावन में गोपी को अपने
जब राधा विहीन ये नगरी शिथिल गमगीन पड़ी है।

तुम हो तो प्रज्वलित सी ये नगरी अंधेर भी,

तुम बिन ये जगमग शहर भी अंधेर क्यों है?

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