नहीं फर्क पड़ता तेरे जाने से...Heart breaking poems


नही फर्क पड़ता तेरे जाने से...

नही फर्क पड़ता तेरे जाने से
जब तक शाम नही ढल जाती
जब तक यादो की किलकारी
कानो में गूंजने नही लग जाती।

हां नया था इस खेल में मैं,
  थोड़ा वक्त तो दे देती
मांता हूँ हालात भी नाजुक थे मेरे
  थोड़ा तरस तो खा लेती
मैने तो अपना मान लिया था तुम्हे
तुम हमे अंजान मुसाफिर समझ कर ही सही
दो वक़्त साथ तो गुजार ली होती।

नही फर्क पड़ता तेरे जाने का
जब तक शाम नही ढल जाती।

हाँ डरता था तुझे खोने से मैं
क्योंकि एक एहसास थी तुझसे जुड़ी
जिसे मैं ज़िन्दगी समझ बैठा था,
ज़िंदगी ने ही ज़िन्दगी छीन ली मेरी
ना जाने किस उलझन में मैं बैठा था।

ना प्यार कभी तुम कर सकी
ना नफरत कभी मैं कर सका,
बस एक दरिया थी माया की
जिसमे मैं बैह रहा था
ना कभी तुम किनारा लगाने की कोसिस की,
ना खुद कभी मैं तट पर आ सका।

नही फर्क पड़ता तेरे जाने से
जब तक शाम नही ढल जाती

ना मेरे अल्फ़ाज़ कभी खत्म हो सके
ना तुझे वक़्त कभी मिल सका,
पतंग था मैं बिन डोरी का
कब मेरी डोर तेरे हाथ लगी
ना तू कभी बाता सकी
ना खुद कभी मैं जान सका।

क्या...नही फर्क पड़ता तेरे जाने से?


खफा तुझसे भी नही की तूफ़ान को देख
रिशतो के धागे तोड़ गयी तू,
और नाही तकलीफ इस बात की है कि
बीच शाहिल में बिन पतवार के छोड़ गयी तू,
बस ऐतराज इस बात की है कि 
बनाने वाले ने इतना कमजोर क्यों बनाया मूझे
की उस तूफान के थपेड़ों को मैं सेह ना सका,
अरे कुछ तो कमी होगी मेरी दीवानगी में
की तेरे इंतिज़ार में मैं मर ना सका।

फर्क पड़ता है तेरे जाने से...फर्क पड़ता है

अब बस अफसोस इस बात की है कि,
अगर तुम सपना थी
तो तुम्हें देखने से पहले मैं जाग क्यों ना सका
वो भी ना सही...
उस सपने के अघोष में मैं हमेशा के लिये शमा क्यों ना सका।


फर्क पड़ता है तेरे जाने से
शाम ढलने से पहले भी
सूरज निकलने से पहले भी।
क्यों कि प्यार था तुमसे
सूरज निकलने से पहले भी
शाम ढलने से पहले भी।



नहीं फर्क पड़ता तेरे जाने से...Heart breaking poems नहीं फर्क पड़ता तेरे जाने से...Heart breaking poems Reviewed by Hindiyans on अक्तूबर 05, 2018 Rating: 5
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