हमारे भारत को यूँ ही विविधताओं का देश नहीं कहा जाता, इस मात्रभूमि ने अपने अंदर हज़ारों अनुसरणीय त्योहारों को सहेज रखा है ,लेकिन अफसोस कि इन महान पंरपराओं को छोड़ हम निरंतर पश्चिमी सभ्यताओं के गुलाम होते चले जा रहे हैं।
Karma festival की Story
कहा जाता है कि वर्षों पूर्व एक गाँव में सात भाई रहा करते थे, चुकी सभी किसान थे इसलिए वो नित्य प्रतिदिन खेतों में काम करने जाया करते थे । चुकी उन्हें काम में व्यस्तता के कारण भोजन के लिए घर आने का वक़्त नहीं मिल पाती थी इसलिए उनकी पत्नियाँ उनके लिए भोजन खेत में पहुँचा दिया करती थी।
एक दिन सभी भाई खेतों में काम कर रहे थे, दोपहर हो चली लेकिन उन सबों के लिए किसी ने भोजन नहीं पहुंचाया, जब वो शाम को अपने घर पहुंचें तो उन्होंने देखा कि उनकी पत्नियाँ किसी करम वृक्ष के समीप नृत्य कर रही थी, चुकी सातो भाई पहले से ही क्रोधित थे, जब उन्होंने घर में नाच गाना देखा तो वो क्रोध से बिलबिला पड़े और नतीजन भाइयों ने करम के वृक्ष को उठाकर समीप के नदी में फेंक दिया।
धीरे धीरे वक़्त बीतती गई और उनलोगों के सम्पत्ति की ह्वास होने लगी और कुछ वक्त के बाद ऐसी स्थिति आ गई की वो भूखे रहने को मजबूर होने लगे। कुछ वक्त के बाद जब पुजारी आये तो इन भाइयों ने उन्हें सारी बात बताई , फिर पुजारी ने उन्हें सारा माजरा समझाया कि ये सब करम बाबा की अपमान करने के कारण हो रहा है अतः तुमलोग वापस उनकी पूजा करना शुरू करो सब ठीक हो जाएगा।
उन सभी भाइयों ने अच्छी खासी खोजबीन के बाद करमा की पेड़ ढूंढी और उसकी डाल की पूजा शुरू की।
कर्मा कब है / karma kab h
Karma festival 2020 date
Karma festival प्रति वर्ष भादप्रद के एकादशी को मनाई जाती है जिस दिन पूरी चाँद निकली होती है, और ये भादप्रद अगस्त/सितम्बर माह होती है।
इस बार 2020 में कर्मा 29 अगस्त को है यानी उसी दिन हमें पूरी चाँद भी दिखेगी और ये कर्मा रूपी प्रकृतिक त्योहार भी मनाई जाएगी।
क्यों मनाई जाती है Karma Festival?
मुख्य रूप से इसके दो मत है -
1- बहनें अपने भाईयों के लिए ये त्योहार मनाती हैं।
2- पर्यावरण की पूजा हेतु इस त्योहार को मनाया जाता है।
1- Karma festival 2020 जो कि भादो यानी अगस्त में मनाई जाएगी इसमें बहनें समस्त रीति रिवाज से अपने भाइयों के लिए आशीर्वाद मांगती हैं ताकि उनका भाई समस्त बाधाओं को पार उन्नति कर सके।
2- इसमें श्रद्धालु करम की डाल समेत समस्त प्रकृति की पूजा करते हैं , यह एक तरह से प्रकृति के लिए आभार व्यक्त करने जैसा है ताकि हम पर्यावरण की कीमत को समझें और संरक्षित रखें।
कर्मा कैसे मनाया जाता है? Karma kaise manaya jata hai?
कर्मा मनाने वाले करीबन 9 दिन पहले एक बांस की टोकरी में जवा यानी 9 प्रकार के बीज के दाने उस टोकरी में डाल देते हैं,ध्यान रहे इससे पहले उस टोकरी में मिट्टी भी डाली जाती है वरना आओ यूँ ही कोशिश करना न शुरू कर दें। ये पंरपरा मुख्य रूप से कंवारी लड़कियों के द्वारा किया जाता है।
जिस दिन से जवा की प्रक्रिया शुरू की जाती है उस दिन से प्रतिदिन सुबह एवं शाम जवा को सामूहिक रूप से किसी स्थान पर बीच में रख दिया जाता है एवं सभी महिलाएं और बच्चियों द्वारा नृत्य एवं गान किया जाता है कई जगह पर पुरुष भी इसमें ढोल - मांदर वगैरह के साथ नृत्य गान करते हैं। निंरतर ये प्रक्रिया 9 दिन तक चलती है , अंतिम दिन में जंगल से करम के वृक्ष की तना को काट कर लाया जाता है और उसे बीच में गाड़ कर खड़ा कर दिया जाता है और उसी के समीप जवा को रख दिया जाता है जिसमें डाली गई बीजें अब तक अच्छी खासी बड़ी हो चुकी होती हैं। अब आखिरी दिन यानी एकादशी को ही पूजा एवं नृत्य गान के साथ इस पूजा की अंत होती है और जवा सहित करम वृक्ष की डाल को अगली सुबह विसर्जित कर दिया जाता है।
कर्मा त्योहार कौन मनाते हैं / कर्मा त्योहार कहाँ मनाया जाता है?
मुख्य रूप से कर्मा त्योहार झारखण्ड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, मध्यप्रदेश, वेस्ट बंगाल और असम में मनाए जाते हैं चुकी इन जगहों में पूर्वकालीन जनजाति रहते हैं इसलिए ये पंरपरा इन्हीं जगहों में जीवित है।
अगर हम विशेष समूहों की बात करें तो Karma Festival खोरठा, संथाल, मुंडा, उरांव, बैगा, कोरबा इत्यादि समूहों के द्वारा मनाई जाती है जो विभिन्न राज्यों में फैली हुई है।
विशेष कर आदिवासी समूहों जैसे हो, मुंडारी, संथाली जो खास कर राँची के इद्र गिद्र रहते हैं कि द्वारा उस दिन हड़िया(पके चावल से बनाया जाने वाला पेय पदार्थ) का सेवन काफी होता है और इसको पूजा में भी शामिल किया जाता है, लेकिन ये प्रक्रिया सभी समूहों द्वारा नहीं होता।
जिस वक्त मैं ये लिख रहा हूँ हमारी गाँव जहाँ आदिवासी नहीं रहते हैं ,की बच्चियाँ और कुछ महिलाएं सुबह एवं शाम कर्मा पूजा की प्रक्रिया को शुरू कर चुकी हैं और चुकी मैं तो पूजा स्थल पर साधारणतः नहीं जाया करता लेकिन वहाँ की आनंद मई कोलाहल कानों को काफी सुकूँ देती है, और इसमें कहीं दो राय नहीं है कि ये पंरपरा,ये त्योहार किसी भी तरह से राष्ट्रीय त्योहारों से कम नहीं है बल्कि इसके मायने, इसके लक्ष्य बेहद अलग और प्राकृतिक है।
विलुप्ति की ओर हमारी महान पंरपरा और हमारी मानसिक गुलामी।
इन दिनों देखा जाए तो हम पश्चिमी सभ्यता की ओर कहीं अधिक गति से अग्रसर होते चले जा रहे हैं , चाहे वो जन्मदिन में केक काटना हो या शालगिरह में भी वही पुरानी सभ्यताओं का अनुसरण करना ये देखे बगैर की इस पश्चिमी सभ्याताओं से कहीं अधिक सम्पन्न है हम भारतीयों की पंरपरा फिर भी हम अपने पास मौजूद सम्पन्नता को दिन प्रतिदिन भूलते जा रहे हैं।
लार्ड मैकॉले ने 1735 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में कहा था कि...
भारत के हर एक कोने में मैंने कई दिनों तक भर्मण किया और आश्चर्यजनक बात रही कि मुझे वहाँ कोई चोर या भिखारी नहीं मिला, इतनी संपन्न एवं आदर्शवादी राष्ट्र को गुलाम बनाना है तो सबसे पहले उसकी मेरुदंड को तोड़ना होगा यानी हमें उनकी सभ्याताओं को नीचा दिखाना होगा और भारतीयों को मानसिक गुलाम बनाना होगा ताकि वो पश्चिमी सभ्यता और पश्चिमी लोगों को अपने से उच्च समझें।
अंग्रेजों ने अपनी कुनीतियों की आधार रखी और आज हम स्वयं अपने पंरपरा रूपी मेरुदंड को नष्ट कर रहे हैं।
कर्मा इतनी महान पारंपरिक पर्व होने के बावजूद इसे आजतक वो स्थान नहीं मिल पाया है जो मिलनी चाहिए थी, इसे महज आदिवासियों की त्योहार के रूप में समेट कर रख दिया गया है जबकि अगर इसकी गहराई में जा इसके आदर्शों को देखा जाए तो ये उससे भी कहीं अधिक है।
अगर हम अब भी अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता के प्रति जागरूक नहीं होते हैं तो आज़ाद होने के बावजूद अंग्रेजों की मानसिक गुलामी से पीढ़ियों तक जकड़े रहेंगे जैसे कि आज हैं, Hello के रूप में , Good morning के रूप में ये सब देखने में सुनने में महज चंद शब्द है लेकिन नहीं ये महज शब्द नहीं है ये हमारी मानसिक गुलामी के निशान है।