बचपन में बस हमें रटा दिया जाता था की हमारा देश आज़ाद हुआ था इस 15 अगस्त को, अंग्रेजों के शिकंजे से हम आज़ाद हुए थे, अब देश पर पूर्ण रूप से हमारा अधिकार है जैसे कई बातें हमें बताई जाती थी जिससे हमें बेहद गर्व होती थी लगता था की हाँ अब हम सब एक हैं , संविधान सबके लिए एक है।
लेकिन जैसे - जैसे हम बढ़ें होते चले गए ये आज़ादी की भ्रम टूटती चली गई , जो बातें हमारे शिक्षकों ने बताई वो सच तो थी, लेकिन अधूरी थी। हमारे शिक्षकों ने ये तो बताया की हम अंग्रेजों से तो आज़ाद हो गए हैं लेकिन ये नहीं बताया की हम सिस्टम पर काबिज लोगों के गुलाम बन रह गए , आम नागरिक आज हर उस व्यक्ति का गुलाम है जिसे सिस्टम ने थोड़ा भी पावर दिया है।
किताब के लेखकों से आज अजीब नफरत सी होती है जो कहते थे की पुलिस हमारी रक्षा करती है , लेकिन अफसोस की मुझे आज तक एक भी ऐसी पुलिस नहीं दिखी जिसका मक़सद उन लिखी कहानियों सी होती थी। याद है मुझे जब मैं डुमरी थाना गया था किसी काम से उसी वक़्त एक महिला आई रोते हुए शिकायत दर्ज करवाने और उस एक साधारण पुलिस ने जो बदतमीजी दिखाई उस वक़्त वो मेरे लिए अकल्पनीय थी। आप जाकर कहने की हिम्मत करेंगे उस महिला से की हम आज़ाद हैं ? क्या उस महिला के लिए इस आज़ादी की कोई मायने रखती है? वो तो आज भी उसी मजबूरी की बेड़ियों से बंधी है जिससे उसके पूर्वज बंधा हुआ करते थे।
हाल ही में एक विधायक सेंगर को सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद की सजा दी, शायद कहानी तो पता ही होगा आपको उस बलात्कारी की जिसे बचाने के लिए पूरी पुलिस महकमा उसकी ढाल बन बैठी थी, बलात्कार पीड़ित सहित उसके परिवार पर उसी वक़्त एक्सीडेंट हुआ, या आप कह सकते हैं की करवाया गया, और कई आम जनता ने भी उस खूनी खेल में खूब साथ दिया सेंगर का। आप तनिक इस आज़ादी की रोशनी से परे जाकर खुद को उस पीड़ित के जगह पर रख कर देखिए की क्या आप आज़ादी की जश्न मनाएंगे जिसके सिस्टम ने आपकी जीवन को नर्क बना कर रख दिया?
मैं खुद गया था अपने यहाँ का अंचल कार्यालय जरूरी काम थी मेरी वहाँ के मजिस्ट्रेट से, घण्टों इंतिज़ार करने के बाद दो बजे मेरी दर्शन हुई उनकी , आकर करीबन आधे घण्टे काम किये वो और अपने कार्यालय में जा आराम फरमाने लगे कुर्सी पर, मैं कार्यालय के बाहर जाकर पूछा उनसे की कितनी देर प्रतीक्षा करनी पड़ेगी सर , उसने अपनी पूरी गाल फाड़ चीखना शुरू कर दिया जैसे ये कार्यालय उसके पिताजी का हो। आप सोचिये की क्या लोगों के जहन में तब तक ये आज़ादी आएगी जब तक सिस्टम में ऐसे लोग बैठे हो?
माफ करियेगा लेकिन ये झंडा फहराना मुझे सिर्फ इस लिए अच्छा लगता है क्यों की हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अदम्य साहस दिखा अंग्रेजों को उनकी उसी ब्रिटेन में खदेड़ दिए जहाँ से वो आए थे।
एक प्रश्न कौंधता है अंदर की हम बड़े गर्व से कहते हैं हमारा भारत महान, लेकिन कभी विश्लेषण करियेगा की क्या महान? हाँ हम भारत की मिट्टी और हवा को महान कह सकते हैं बेशक, इसने कभी किसी के साथ पक्षपात नहीं किया , लेकिन फिर तो पाकिस्तान , चीन सभी की मिट्टी सभी की हवा ऐसी ही है फिर हमारा भारत महान कैसे ?
अंधापन से परे जाकर आप सोचिये की क्या आज तक हम ऐसे भारत का निर्माण कर पाए हैं जिसे हम महान कहें? हाँ वो नेता , वो अधिकारी जो गरीबों के हक़ को हड़प कर खुद को राजा बना बैठे हैं उनकी कर्कश भरी भाषणों में आप सुनेंगे हमारा महान , एक रटे हुए बच्चे के मुँह से आप सुनेंगे हमारा भारत महान राह में चल रहा व्यक्ति से सुनेंगे आप हमारा महान लेकिन बस आप एक जवाब पूछियेगा आप, या उनलोगों से या खुद से की हमारा भारत महान क्यों?
◆भूख से प्रतिदिन 7000 लोगों की मृत्यु।
◆ह्यूमन राइट के अनुसार 2017 से 2018 के बीच करीबन 1674 मौतें पुलिस कस्टडी में।
ये दो मुख्य डाटा है जो की देश की स्थिति को दर्शाती है , फिर भी अगर हम कहते हैं की यही आज़ादी है तो आपको इस आज़ादी दिवस पर आपकी आज़ादी मुबारक हो।