कई अवधारणाएं हमारे मन में एक साथ दौड़ पड़ती है जब भी बात लड़की की होती है , नहीं हम लड़की को उस मंदिर की देवी के तौर पे तो नहीं देखते, कभी नहीं देखते शायद ऐसा इसलिए क्यों कि हमारी संकुचित मानसिकता देवी के दर्जे तक सोच नहीं सकती, एक छोटी सा वाक्या हुई थी 2 वर्ष पहले जिसने मुझे झकझोर कर रख दिया बहुत छोटी, मामूली सी घटना थी वो लेकिन तब वो क्षणिक भर की घटना एक स्त्री की उस पवित्रता, उस देवी के स्वरूप को महसूस करवाई थी जो शायद एक स्त्री ही कर सकती थी।
बात है कि मैं अपने रिश्तेदार के साथ गिरिडीह जा रहा था जो कि झारखंड में आती है , घर से गिरिडीह की दूरी महज 7 किमी होगी, हमने 4 किमी का फासला तय किया और अल्कापुरी एक स्थान है जहाँ पहुँचे वहीं पर उसी वक़्त एक विद्यालय की छुट्टी हुई थी और उसके कारण सड़क जाम हो गई थी गाड़ियों से, चुकी शाम की वक़्त थी और आसमान को बादलों ने भी ढक रखा था तो हम वहीं बाइक को बंद कर उसी पर बैठे बैठे वेट करने लगे जाम खत्म होने की , अब ये आदत में शामिल है शायद की भीड़ भाड़ और खाली वक़्त में नजर तो उन्हें ही ढूंढती है , हाँ वही जिसकी दुपट्टा अगर गंदी भी होना तोभी लड़के उसमें खुशबू को ढूंढ निकाला सकते हैं,और वही गंदे दुपट्टे को याद कर ऐसी ऐसी शायरी लिख सकते हैं जिसके सामने गालिब भी फीका पड़ जाए।
चुकी मैं बाइक की पीछे वाली सीट पर बैठा था तो स्वाभिक थी की मेरी नजरें भी कुछ ऐसी ही किरण की तलाश में थी , मेरी नजरों की तलाश तब खत्म हुई जब आसपास महज 12-14 वर्ष के बच्चे दिख रहे थे और मुझे लगा कि अभी बच्चों की छुट्टी हुई है शायद।
तभी गाड़ी खड़ी रहने के बावजूद पता नहीं कैसे अनियंत्रित हुई और एक ओर पूरी तरह से झुक गई मानो हम गिरने ही वाले हैं और उस गिरने के दौरान मेरी नजर हमारी बाइक के जस्ट आगे खड़ी एक वैन पर पड़ी जिसमें बच्चे बैठे थे और उन्हीं में से एक लड़की भी थी , हमारी गिरने की स्थिति देखते ही उसकी धीमी सी एक चिंता भरी आवाज अनायास ही निकल आई, उसकी भाव ऐसी थी मानो वो हमारी कितनी करीबी हो, बिल्कुल उसी प्रकार जैसे एक 6 महीने के बच्चे को गिरते देख उसकी बड़ी बहन करती , उसकी परवाह बिल्कुल एक माँ के समान थी , लेकिन सच था कि न वो हमें जानती थी और न ही हम उसे जानते थे , फिर इतनी उदारता क्यों? किसी अजनबी के लिए इतनी फिक्र क्यों ? हमलोग तो शायद अपने सगे के लिए भी इतनी चिंतित न हो, हमारे माथे में सारी लकीरें बस इस वजह से तो नहीं उभर आएगी की हमारा भाई , मित्र या कोई जान पहचान का व्यक्ति खड़ी बाइक से गिर रहा हो ,इतनी बड़ी बात नहीं थी ये शायद ।
उस वक़्त मेरी मस्तिष्क मानो किसी तेज अश्व के समान दौड़ रही थी, मेरे भीतर कई सवाल , कई घटनाएं एक साथ दौड़ पड़ी थी और मुझे खुद में घृणित कर रही थी कि काश हम सबों के भीतर इसकी जैसी तनिक भी अवधारणा होती इस समाज के लिए, काश इतनी ममता होती यहाँ के लोगों के लिए ।
जिसने भी हज़ारों वर्ष पूर्व स्त्री को देवी का दर्जा दिया होगा वो वाकई महान होगा , महान होगा कि उसने स्त्री के अंदर छिपे ईश्वर के स्वरूप को देखा ,महसूस किया और देवी को देवी का ताज पहनाया। लेकिन ये उदारता सिर्फ उनके अंदर ही क्यों? क्या एक महिला होने के नाते वो अपने अंदर इतना प्रेम , निस्वार्थता को रख सकती है और एक पुरुष होने के नाते हमारी कोई दायित्व नहीं? महज खड़ी बाइक से गिरते हुए देखने पर उनके आंखों में परवाह करने की एक सैलाब सी उमड़ आती है फिर हम दामिनी को तड़पता हुआ सड़क पर कैसे छोड़ सकते हैं? बल्कि हम उस क्रूर हद तक जा ही कैसे सकते हैं की हम दामिनी को दामिनी बनाने की कल्पना भी कर लें?
दिल्ली राजधानी है हमारी, बड़े लोग रहते हैं वहाँ, देखा था मैंने दिल्ली की एक वीडियो क्लिप में जब रात में एक अकेली लड़की को गाड़ी में बिठाने की फिराक में कई बड़े लोग बार बार उसके पास से गुजर रहे थे, खुद को बड़ा बनाते हुए लोग शायद अपने संस्कार अपनी सभ्यता को बड़ा बनाना भूल जाते हैं , दामिनी की क्रूरता के बाद भी न जाने कितने हैवान फिर दामिनी की उस पीड़ादायक घटना को दोहराने की फिराक में लगे रहते हैं और हमारी राजधानी इस मामले में काफी प्रगति कर रही है, कोई ऐसी दिन नहीं है कब सैकड़ों शिकायतें फाइलों में या जहन में दब कर रह जाती है, शायद इसलिए कि कहीं सवाल घूम कर ना आ जाये कि तुम वहाँ क्या कर रही थी? इतने बजे क्यों गई थी? काश एक तीखा सवाल उन राक्षसों से की जाती की तुम आत्महत्या क्यों नहीं कर लेते , यकिन करिये आत्महत्या बेशक समस्या की हल नहीं है लेकिन अगर वैसे हैवान आत्महत्या करने लग जाएं तो किसी की बेटी , बहन या प्रेमिका को कभी आत्महत्या करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
एक घोर अंधकारमय भविष्य की ओर टकटकी लगाए मैं अपने आर्टिकल को छोड़ रहा हूँ और साथ ही उम्मीद भी करता हूँ कि काश समय का चक्र वापस हमें वेदों की ओर ले जाये जहाँ देवी को सिर्फ दर्जा नहीं बल्कि हक़ भी मिलती थी।
A Girl's Innocence, सत्य घटना पर आधारित।
Reviewed by Hindiyans
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जुलाई 29, 2020
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