शहीद रमेश सिंह मुंडा जी |
तमाड़, घने जंगलों - बीहड़ों से परिपूर्ण ये क्षेत्र दो दशक पूर्व ऐसी तो बिल्कुल न थी। लोकतंत्र, शासन व्यवस्था ये सिर्फ कागजों तक सीमित थी, अगर यहाँ किसी का बोलबाला था तो वो थे माओवादी के विभिन्न समूह। अच्छी सड़कें , अच्छे पेयजल व्यवस्था और उपयुक्त शिक्षा के संशाधन यहाँ किसी ख्वाब में भी नहीं आते थे। लेकिन हर एक अंधेरा के बाद कभी न कभी रोशनी का आना तय होता है और आया भी।
1 1 नवम्बर 1955 को ऐदेलहातू पंचायत के चिरुडीह में पिता हरि सिंह मुंडा , माता मंगला देवी के यहाँ एक सुपुत्र का जन्म हुआ, किसी को ये अंदाजा बिल्कुल न था कि ऐसे जंगलों के बीच जन्म ले, गरीबी से लड़ ये छोटा सा बच्चा भविष्य में रमेश सिंह मुंडा नाम से प्रसिद्ध हो किसी दिन मुख्यमंत्री का पद भी ठुकरा सकता है।
कहते हैं मुसीबतें इंसान को मजबूत करती है, नेता जी को जानने वाले बताते हैं कि उनका बचपन बेहद मुश्किल भरा गुजरा है लेकिन रमेश सिंह मुंडा कभी अपनी परिवारिक स्थिति को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिए और डटे रहें बिल्कुल एक योद्धा के भांति जिसके बदन पर अनगिनत तिरें पीड़ा दे रही हो लेकिन वो तब भी अपने कर्मभूमि पर युद्ध भूमि पर डटा हो।
अपने आसपास लोगों की स्थिति और इस सामाजिक दुर्दशा ने न जाने इस बच्चे को किस हद तक प्रभावित किया कि 12-14 वर्ष की उम्र में ही वो राजनीतिक गलियारे का हमराही हो चला। तब के कद्दावर नेता प्रफुल कुमार सिंह को ये बच्चा रमेश सिंह मुंडा इतना भाया की वो इसे अपने साथ रखने लगे और प्रफुल कु सिंह के साथ वक़्त बिताते बिताते ये छोटा बच्चा मानसिक रूप से परिपक्व हो चला था।
अगर साथ ही इनकी शिक्षा की भी बात की जाए तो ये दशवीं तक कि पढ़ाई इन्होंने बुंडू से की और आगे अपने बड़े भाई के पास रहकर बनारस से बारहवीं एवं स्नातक उतीर्ण किया।
किसी कार्यक्रम में रमेश सिंह मुंडा |
वक़्त के साथ रमेश सिंह मुंडा जी की उम्र और पहचान दोनों बढ़ने लगी थी 80 के दशक में इनका काफी मेलझोल तब के विधायक टी मुचिराय मुंडा जी के साथ बढ़ गया था और अब तक के यात्रा में तमाड़ विधानसभा के लोग इनके संघर्ष और जनसेवा की भावना से भली भांति परिचित हो चुकी थी , चाहे वो संघर्ष नक्सलियों के विरुद्ध हो या फिर सिस्टम के विरुद्ध हम कह सकते हैं कि रमेश सिंह मुंडा अपने युद्ध की शंखनाद हर उस जगह कर देते थे जहाँ जनता के साथ अन्याय होती थी और इन्हीं कृत्यों ने इन्हें फर्श से अर्श तक पहुँचा दिया।
इनकी चुनावी संघर्ष 1990 में शुरू हुई जब ये पहली बार हुई विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन इस चुनाव में इन्हें शिकस्त मिला। ये चुनाव का शिलशिला चलता रहा और आखिर कर 1999 में समता पार्टी के बैनर तले इन्होंने तमाड़ विधानसभा से चुनाव लड़ा और संयुक्त बिहार विधानसभा का सदस्य बने और इन्हें मधनिषेध मंत्रालय के पद पर सुशोभित किया गया । उस विजयी के बाद तमाड़ विधानसभा की जो रूपरेखा बदलना शुरू हुआ वो कभी यहाँ के लोगों ने कल्पना भी न कि थी, अपने बुलंद आवाज, हठी स्वाभाव और तार्किक जवाब देने की क्षमता के कारण किसी अधिकारी में भी इतनी हिम्मत न होती थी कि इनके क्षेत्र के कामों को रोक दी जाए। इस दौरान ये झारखण्ड को अलग राज्य बनाने हेतु भी अन्य क्रांतिकारियों के साथ जी तोड़ मेहनत कर रहे थे जो आखिर कर सन 2000 में सफल हुआ।
इनके ही कई जानकार बताते हैं कि 2003 में इन्हें मुख्यमंत्री बनने तक का भी प्रस्ताव मिला था जिसे इन्होंने ठुकरा दिया और 2-3 दिन तक करीबन 42 विधायकों को बुंडू के आईटीआई में रख तब के तत्कालिन सरकार को गिरा दिए थे, इतनी साहस से आप रमेश सिंह मुंडा जी के व्यक्तित्व का अंदाजा लगा सकते हैं। इसी कार्यकाल में इन्होंने मशक्कत कर 7 सितम्बर 2003 में बुंडू अनुमंडल की स्थापना भी किये जो कि उनकी एक बड़ी उपलब्धि है जिसके बारे में ये कहते थे कि बुंडू अनुमंडल मैं अपने हाथ से लिखूंगा और उन्होंने लिखा भी। वो विजयी होने के बाद शुरुआती दौर में अक्सर कहा करते थे कि आज़ादी के बाद विकास के 53 वर्ष बनाम 3 वर्ष , अर्थात जो विकास पूरे 53 वर्ष में न हो सका उसे मैंने 3 वर्ष में कर दिखाया जो कि सच था।
अपने सहयोगियो के साथ रमेश सिंह मुंडा |
पुनः 2004 में चुनाव हुई तब इनके साथ प्रतिद्वंदी के रूप में राजा पीटर भी चुनाव लड़ा जो अभी रमेश सिंह मुंडा जी की हत्या के मामले में जेल में बंद है। चुनाव का परिणाम आया और फिर रमेश सिंह मुंडा विजयी हुए जो कि होना ही था। लेकिन अब रमेश सिंह मुंडा अपनी बढ़ती कद और प्रतिष्ठता के कारण राजनीतिक षडयन्त्रों के शिकार होना शुरू हो चुके थे । इस बार इन्हें कल्याण मंत्रालय का पद भार भी सौंपा गया जिस कारण अब इनकी पहचान पूरी झारखण्ड में भी बढ़ने लगी थी।
9 जुलाई 2008 को बुंडू स्थित हाई स्कूल में रमेश सिंह मुंडा बच्चों के किसी कार्यक्रम में सम्मिलित होने गए किसी को अंदाजा न थी कि ये दिन उनकी आखिरी दिन होगी , उनके बेटे और तमाड़ के तत्कालिन विधायक विकास कुमार मुंडा बताते हैं कि ऐसी खतरों के बारे में पिताजी से उनकी बात कुछ दिन पूर्व ही हुई थी लेकिन रमेश सिंह मुंडा कभी ऐसे धमकियों और खबरों को इतनी तवज्जो नहीं देते थे। 9 जुलाई को यही हुआ जब रमेश सिंह मुंडा बच्चों को सम्बोधित कर रहे थे तब कई माओवादी बन्दूकों से लैस हो आये और इनपर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दी जिससे घटनास्थल पर ही तमाड़ के जननायक रमेश सिंह मुंडा शहीद हो गए।
इनकी हत्या से इनके परिवार समेत पूरे तमाड़ विधानसभा वासी को बेहद झटका लगा क्यों कि कई ख्वाब थे जो इन्होंने जनता के साथ मिल बुन रखे थे जो टूटता हुआ दिख रहा था । 2008 में उपचुनाव हुआ और रमेश सिंह मुंडा जी की धर्म पत्नी चुनाव लड़ी लेकिन राजा पीटर विजयी रहा। अब तक रमेश सिंह मुंडा जी के पुत्र विकास कुमार मुंडा भी परिपक्व हो चले थे , अपने पिता से बेहद घनिष्ठ लगाव होने के कारण विकास कुमार मुंडा भी अपने पिता के आदर्श और तौर तरीकों को पूरी समझ, ग्रहण कर चुके थे और पहली बार ये 2009 में चुनाव लड़े लेकिन आर्थिक परिस्थिति और कुछ अन्य राजनीतिक षडयन्त्रों के कारण ये विजयी हासिल न कर सके और इस बार भी पीटर विजयी रहा। इधर झारखंड पुलिस रमेश सिंह मुंडा की हत्या की जाँच कर ही रही थी या आप कह सकते हैं की जाँच की बस कागजी दिखावा कर रही थी क्यों कि हत्या के 7-8 वर्ष बाद तक भी झारखंड पुलिस कुछ नहीं कर पाई जो एक बड़ा सवाल खड़ी करती है।
शहीद रमेश सिंह मुंडा जी की लोगो |
2014 में फिर चुनाव हुआ और इस बार विकास कुमार मुंडा विजयी हुए और विजयी होने के बाद इन्होंने भी अपने पिता के रास्ते पर चलना शुरू कर दिया और जो काम का शिलशिला 2008 में थमा था वो फिर चल पड़ा। साथ ही इन्होंने पुनः अपने पिता के हत्या की जाँच की माँग की जिसे आखिर कर राष्ट्रीय जाँच एजेंसी NIA को सौंपी गई और NIA ने इसका दोषी राजा पीटर को ठहराया जिसने सुपारी दे कुंदन पाहन से रमेश सिंह मुंडा की हत्या कराई हालांकि कोर्ट ने अभी तक इस मामले में सजा नहीं सुनाई है लेकिन NIA ने ये भी स्वीकारा है कि एक सफेदपोश (नेता) भी इस हत्या में शामिल है जिसकी मौजूदगी तय है लेकिन सबूत नहीं होने के कारण उसपर कार्यवाही नहीं कि जा पा रही अब ये सफेद पोश कौन हो सकता है इसकी गुत्थी आप खुद सुलझाइए।
2014 के बाद जनता ने विकास कुमार मुंडा के कार्यों और स्वाभाव को देखते हुए पुनः 2019 में विजयी बनाया और विकास कुमार मुंडा भी निरंतर क्षेत्र के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ रहे , चाहे वो उपलब्धि सड़क से सम्बंधित हो शिक्षा से सम्बंधित हो या फिर स्वास्थ्य से सम्बंधित हो।