आज़ाद देश की गुलामी

2014 के बाद से जो राजनीति की हवा जो बदली है उसके बाद से हमें बेबाक हो लिखने से फहले भी सोचना पड़ता है कि कहीं मेरी राय को देशद्रोही करार न कर दी जाए 15 अगस्त 2021 आ गई है , बच्चों में उत्तेजना भरी होती है ठीक जैसे मैं जब बच्चा हुआ करता था तो होती थी, स्कूल पहले जाना मेडल्स पर स्टिकर लगाना , नाटक के लिए टीम बनाना और भी ढेरों चीजें लेकिन आज वो उत्सुकता नहीं होती वजह शायद उम्र है और माहौल भी।
आज बैठा बैठा यूँ ही बस सोच ही रहा था कि कितने आज़ाद हैं हम और किससे आज़ाद हैं हम?
बेशक अंग्रेजों की क्रूरता से हमारे पूर्वजों ने लड़ हमें आज़ादी दिलवाई लेकिन क्या उस आज़ादी की आंनद हम उठा पा रहे हैं?
अगर अपने देश में ही सही होने के बावजूद घुट कर, दब कर जीना पड़े तो उसे क्या कहेंगे आप?
अगर हर कदम पर तंत्र आपको नोचने पर लगे हो तो उसे क्या कहेंगे आप?
Police brutality free image


अभी कुछ महीनों पहले जयराज और बेनिक्स कि बर्बर कहानी आपने सुनी होगी कि किस तरह से महज ज्यादा देर तक दुकान खोलने के कारण उन बाप बेटों को नंगा कर के चमड़ी तक उधेड़ दी गई थी, जिन्होंने देखा था वो बताते हैं कि उनके शरीर से चमड़ी लटक रही थी थाने में वो जमीन पर नंगे लेटे थे और चारों ओर खून बिखरी हुई थी... सोचिये की उनके लिए आज़ादी, अपना देश , अपनी पुलिस के क्या मायने होंगे? क्या उन्हें ये सब महज तुक्षता नहीं लगती होगी?
ऐसा एक केश xx 3,9- अखबार में आने के कारण हाइलाइट हुई लेकिन लाखों की संख्या में ऐसी घटनाएं होती रहती है , जब तक ऐसे दानव प्रवृति के लोग जनसेवा जैसी संस्थाओं में कार्यरत रहेंगे तब तक ये देश आजाद होकर भी गुलाम रहेगी।

मैं इस सम्बंध में एक साधारण पुलिस से बात कर रहा था उनका कहना था कि अगर ऐसा नहीं करेंगे तो जिसके पकड़ें हैं वो सच ही नहीं कहेगा।
सोचिये की इस सोच के साथ किस ओर जा रहे हैं हम , बगैर रिमांड में लिए किसी व्यक्ति को उठाकर पिट देना कितना सही है? अगर वो गुनहगार है यो थोड़ी देर के लिए मान सकते हैं लेकिन अगर वो बेगुनाह है तो फिर क्या?
पुलिस बर्बरता
हमारे आज़ाद भारत के थाने की स्थिति ऐसी है कि आप ज्यों ही वहाँ गुए थाने वाले लूटने में लग जाते हैं अगर आप गुनहगार हैं तो ज्यादा देना पड़ेगा और अगर बेगुनाह तो कम और ये कहि सुनी बात नहीं है मैं वैसी परिस्थिति में खुद जा चुका हूँ।

आज लोग थाना जाने से कतराते हैं क्यों कि वहाँ समस्या कम नहीं होती और बढ़ जाती है।
जब तक वर्दी वालों से निर्दोषों की रूह कांपती रहेगी तब तक ये घटनाएं होती ही रहेगी।

अगर इसी स्वतन्त्र राष्ट्र में भ्रष्टाचार का आंकड़ा देखा जाए तो 86वें नम्बर पर है। भारत के 51% लोगों ने ये माना है कि उन्हें किसी भी सरकारी दफ्तर में काम करवाने के लिए घुस देनी पड़ती है मैंने खुद अपने गाँव में देखा है कि सरकारी आवास के लिए करीबन एक लाख तीस हजार रुपये मिलते हैं जिसमें मुखिया , सरपंच, पंचायत सेवक वगैरह कम से कम 30 हज़ार रुपये हर एक इंसान से ले लेते हैं और नहीं दिए तो काम ही नहीं करेंगे, लोगों ने भी खुद को इसी परिवेश में ढाल लिया है  वो थोड़ा कम ज्यादा कर के दे देते हैं।
Police case


आज राजनीतिक दृष्टिकोण से ऐसी परिस्थिति बन गई है कि आप अगर किसी सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी पर सवाल करें तो वो उसके समाधान और जवाब देने के बजाय आपको देशद्रोही और गलत दिखाने में लग जाते हैं।

जब तक ऐसी परिस्थिति बनी रहेगी तब तक ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि आज़ाद देश के ग़ुलाम हैं हम।
आज़ाद देश की गुलामी आज़ाद देश की गुलामी Reviewed by Story teller on अगस्त 15, 2021 Rating: 5
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