अभी सुबह के साढ़े आठ बज चुके हैं, आज भी वही अलसाई सी सुबह की दिनचर्या में मैं उठा और प्रतिदिन की तरह घर के बगल में लगाये गए कटहल, आम, लीची, अनार वगैरह के पौधे का जायजा लेने पहुँच गया।
सामने खलिहान में मेरे बवा(दादा) के भाई, और मेरी माँ वहाँ थी , कुछ परिवारिक मन मुटाव हुई होगी जिसे मेरी माँ फोन पर उनके सामने शायद हल करने की कोशिश कर रहीं थी, मैं गया तो सामने दो कुत्ते के बच्चे खेल रहे थे , एक मुझे देखते ही मेरे पास दौड़ आया और उसे मेरे पास आते देख मेरी माँ मुझे डाँटना शुरू कर दी कि अगर ये तुमसे सटा फिर अभी तुम तुंरत नहायेगा। ये सुन मेरे चेहरे पर एक हंसी उमड़ पड़ी, मैं घर से बिस्किट लाकर थोड़ा थोड़ा उन पिल्लों को दिया।
तभी मेरे बाबा चीख उठे "अगर तुम नदी नहाने गया तो तुमको बड़ी मार मारेंगे" मैंने देखा कि उनका दस वर्षीय पोता जो कि मेरा भाई लगता है कुछ बच्चों के साथ नदी की ओर जा रहा था।
अपने बाबा की बात सुनते ही वो बच्चा बोल पड़ा कि नदी नहीं जा रहे हैं, तिल लाने जा रहे हैं।
ये सुन मुझसे रहा नहीं गया, और रहा जाता भी कैसे एके साथ बचपन की सारी यादें उमड़ पड़ी।
बचपन में आज के दिन 6-7 बजे हम सभी बच्चों को जबरजस्ती नहला दिया जाता था और कहीं न हम बच्चों में भी प्रतियोगिता होती थी एक दूसरे से नहाने की, की कौन कितना जल्दी तैयार हो पाता है।
आज भी मैंने देखा कि नजदीक के घर में एक बच्चा दरवाजे के सामने धूप में नहाने की तैयारी कर रहा है, मैंने उससे कहा "खड़ा हो, तोर फ़ोटो ले हियो हाम" और वो खड़ा हो गया एक स्माइल के साथ अपनी फोटो खिंचवाने को।
हमारे समय में हम किसी खूबसूरत दृश्य को कैमरों से नहीं बल्कि यादों में सहेज रखते थे, कैमरा से बेशक दूर, अभिज्ञ थे हम लेकिन जब सारे बच्चे बैठकर बीती कहानी सुनाया करते थे तो वो बेहद रोमांचक होती थी।
तिलसकरात के दिन ज्यों ही हमारा नहाना खत्म होता हम तुरंत अपने खलीहान में जा शरीर का पानी सुखाना शुरू कर देते हमारे साथ बचपन के मेरे एक हम उम्र रिश्तेदार होते थे, हम दोनों में प्रतियोगिता शुरू हो जाती की मेरे हाथ का पानी सूख गया तो मेरा सर का पानी सूख गया। आज हम दोनों के बीच एक लंबा फासला बन चुका है।
कहते हैं कि श्री कृष्ण को श्राप मिली थी कि तुम्हारे यदुवंशी आपस में कलह करते रहेंगे, सत्य ही कहते हैं, कुछ वैसे ही कारणों से बीते सात वर्षों में हमारी एक बार भी बात नहीं हुई, और अब वो मेरे साथ वाला छोटा बच्चा आर्मी का जवान बन चुका है। यकीन है, बीते वक्त की यादों के पन्नों को जब भी वो पलटता होगा तब धुंधली सी यादें उसे भी झकझोर जरूर देती होगी।
वही मेरे घर के सामने वाला बच्चा अब तिल को जला कर लाँघने की तैयारी में था, हम सभी बड़े चाव से करते थे ये, मान्यता थी इससे हाइट बढ़ती है, लेकिन ये एक झूठ था मुझे अब समझ आई ताकि नहाने के बाद थोड़ी औषधिक गर्माहट मिल सके।
नहा कर बड़े चाव से चावल के आटे से बनी छिलका, ढकनशेर, पिठा वगैरह हमें खाने को मिलती थी जो पूरा दिन को मजेदार कर देता था, बचपन में शायद ही कभी मैं अकेले खाना खाया होऊंगा, मुझे ऐक बार भी नहीं याद, हर बार पिताजी के साथ ही बैठ खाता था। लेकिन अब नहीं खाता बड़ा जो हो गया हूँ, या शायद छोटा।
आज भी कई चीजें पड़ी है चावल की बनी हुई, माँ के हाथों की स्वाद आज भी है , बस कमी है कि हम बड़े हो गए हैं। कल पतंगे बनाते थे क्यों कि पैसे नहीं होते थे, आज पैसे हैं लेकिन ये बचपना लगता है।
वक्त की दौड़ में हम आगे जा रहे हैं या पीछे नहीं पता, सारे भावनाओं को दबा देना किस उन्नति की पहचान है नहीं पता, बचपन खत्म होने के साथ पिताजी से थोड़ी दूरियाँ क्यों बन जाती है नहीं पता... हम में इतने परिवर्तन के बावजूद हमारे लिए माता पिता के मन में वही बचपन वाला प्रेम क्यों उमड़ता रहता है??? नहीं पता।
मकरसक्रान्ती की ढेरों शुभकामनाएं❤️❤️❤️
बचपन वाली मकरसक्रान्ती - Makarsakranti, kids, festival
Reviewed by Story teller
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जनवरी 14, 2021
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