प्रतिदिन की तरह पुनः ब्लॉगर ने मुझे टॉपिक सुझाया की what is love? और किसी पंद्रह वर्षीय किशोर का प्रश्न है कि...
I am 15 years old boy, i love someone in my class. does she will become my life partner?
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What is love? / Pyar kya hai?
श्रीमद्भागवत गीता में आपको एक शब्द मिलेगा "सात्विक" और इस सात्विक को आप एक निर्मल प्रेम का दूसरा रूप कह सकते हैं। इसकी परिभाषा है कि बिना निजी स्वार्थ, बिना किसी आकांक्षा के किया गया कार्य या सम्मान या कोई अन्य प्रेम रूपी अनुभूति ही सच्चा प्रेम है।
चलिये मैं आपको विवरित कर के समझाता हूँ। अभी जिस जेनरेशन में हम हैं उसमें क्षणिक भर में किसी से भी हमें लगाव हो जाती है जिसे हम प्रेम का नाम दे देते हैं और ये प्रेम क्षण भर में परिवर्तित भी हो जाता है।
क्या ये सम्भव है कि जिससे हम प्रेम करें उसे सांसारिक परिस्थितियों के कारण छोड़ दें या फिर महज इसलिए उसका त्याग कर दें कि उसे हमसे प्रेम नहीं?
नहीं वास्तविकता में ये प्रेम हो नहीं सकता। जिस अनुभूति में आकांक्षा हो, स्वार्थ की भावना हो , दिखावा हो वो कभी प्रेम हो ही नहीं सकता।
आज जिसे हम प्रेम समझ बैठते हैं वो महज एक पसंद है ठीक उसी प्रकार जिस तरह से एक बच्चे को मेले में बिक रहे खिलौने से हो जाती है, उस बच्चे को भी वो खिलौना चाहिए और आपको भी वो व्यक्ति चाहिए जिसे देख आपके भीतर उसे पाने की आकांक्षा जगी है।
अगर आप वाकई में किसी से प्रेम करते हैं तो उसे पाने की ज़िद आपके अंदर हो ही नहीं सकती, आपकी एक मात्र इक्षा होगी कि वो इंसान प्रसन्न रहे चाहे आपके साथ हो या किसी और के साथ। ऐसा न हो कि आप खुद को जबरजस्ती ऐसा सोचने को मजबूर कर रहे हों, आप जबरन उस पसंद को प्रेम में तब्दील करने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन वो संभव नहीं क्यों कि पसंद भौतिक परिदृश्यों को देखकर होती है लेकिन प्रेम करने के लिए किसी आकार की आवश्यकता नहीं है आप हवा से कर सकते हैं, जल से कर सकते हैं किसी भिखारी से कर सकते हैं प्रेम किसी से भी हो सकता है क्यों उसमें किसी भी तरह से आपकी महत्वाकांक्षा छुपी नहीं है। लेकिन पसंद हमेशा खूबसूरत वस्तु से ही होगी चाहे वो महिला हो, गाड़ी हो, घर हो या कुछ अन्य। लेकिन यहाँ आपकी महत्वाकांक्षा छुपी है जिसे आप दरकिनार नहीं कर सकते।
मैं आपको प्रेम और पसंद की एक उदाहरण देता हूँ। एक बार किसी शिष्य ने भगवान बुद्ध से कहा कि भगवान प्रेम और पसंद में अंतर क्या है? तो भगवान बुद्ध सामने खिल रही फूल की ओर दिखा कर बोले कि यदि तुम इस फूल को पसंद करते होगे तो तुम इसे तोड़कर अपने पास रख लोगे या साथ कहीं ले जाओगे परंतु यदि इस फूल से तुम्हें प्रेम होगी तो इसकी देखभाल करोगे की कोई इसे नुकसान न पहुंचाए, प्रतिदिन जल डालोगे ताकि इसका विकास हो।
अभी आये दिन प्रेम के नाम पर अमानवीय घटनाएं की खबरें आती रहती है कि किसी ने एसिड अटैक कर दिया तो किसी ने गोली मार दिया वगैरह , सोचिए क्या प्रेम का ऐसा परिणाम हो सकता है?
कृष्ण तो भगवान थे अगर वो चाहते तो राधा से सरलता से विवाह कर सकते थे परंतु क्या उन्होंने ऐसा किया? प्रेम का अर्थ ही त्याग है , आप जिससे प्रेम करते हैं उसकी प्रसन्नता ही उसके लिए आपकी एक अटल लक्ष्य होनी चाहिए यही तो बस प्रेम है।
प्रश्न- I am 15 years old boy, i love someone in my class. does she will become my life partner? अर्थात मैं 15 वर्ष का लड़का हूँ, मैं अपने क्लास में किसी से प्रेम करता हूँ। क्या वो मेरी जीवन साथी बनेगी।
उत्तर- Pyar to hona hi tha आपके उम्र में करीबन सबको होता है।
लेकिन उसका जीवन साथी बनना आप दोनों के लिए कई तरह से निर्भर करता है जैसे कि धर्म, समाज, स्टेटस आदि।
लेकिन इसके बावजूद अगर आप प्रयत्न करें तो उसको बेशक अपना जीवन साथी बना सकते हैं।
सबसे पहली बात की उस लड़की को आप इजहार तो बिल्कुल भी न करें चुकी आप अभी अपनी उम्र के जिस पढ़ाव में हैं वहाँ कई तरह की उथल पुथल होगी, इसलिए अभी आप उस लड़की को महज दोस्त बना कर रखें और आप अपनी काबिलयत कुछ यूँ करते जाएं कि उस लड़की को सिर्फ आपसे नहीं बल्कि आपकी काबिलियत से प्रेम हो जाये।
ध्यान रहे कोई भी लड़की महज सुंदर दिखने वाले लड़के को प्रेमी तो बना लेगी लेकिन कभी पती नहीं बनाएगी। और चुकी आपको जीवन भर साथ रहना है तो आप धीरे धीरे अपनी काबिलियत बढाते जायें और उस लड़की को जितना हो सके उतना कम्फर्ट जॉन में रखें। साथ ही बिना इजहार किये उस लड़की को एहसास भी जरूर कराएं की आप उसे पसंद करते हैं। इसका फायदा होगा कि अगर लड़की भी आपको पसंद करती होगी तो आपके साथ काफी वक़्त बिताएगी और अन्य लड़कों के अपेक्षा आप संग अच्छा काफी व्यव्हार करेगी। इससे आपको अंदाजा हो जाएगा कि लड़की सोच क्या रही है, अगर अच्छा रिस्पॉन्स मिला तो आप इस रिश्ते को आगे ले जा सकते हैं और अच्छा नहीं मिला इसका मतलब आपको अपने करियर पर और काम करने की आवश्यकता है।
अगर अपने सेटल होने तक आपने उस लड़की को कुछ नहीं कहा है तो अब जाकर सच बोल दें, चुकी अब तक आपको भी अंदाजा हो चुका होगा कि जवाब क्या आएगा। अगर इजहार के बाद वो आपको इग्नोर करती है और आपको लगता है कि वो आपको पसंद नहीं कर रही तो दोबारा किसी भी सूरत में कोशिश न करें, इससे महज आपकी गरिमा को ठेस पहुँचेगा और आप खुद को नापसंद करना शुरू कर देंगे। आप अधिक तो नहीं समझ पाएंगे लेकिन इतना जरूर समझें कि Pyar do pyar lo अर्थात आपके भीतर थोड़ा ईगो जरूरी है वरना आत्मसम्मान को काफी ठेस पहुँचती है।
एक विशेष बात पर ध्यान रहे आपके उम्र में प्यार करियर पर भारी पड़ जाता है और फिर ये करियर पूरे जीवन पर भारी पड़ जाता है इसलिए पहले करियर सुधारें फिर प्रेम को तवज्जो दें। वरना आप बेशक जीवन भर बेबी सोना करते रहेंगे लेकिन अंत में कोई नौकरी वाला ही आपकी बेबी सोना को ले जाएगा। हालांकि ये बात आप पढ़ेंगे भी विश्वास भी करेंगे लेकिन मुझे यकीन है आप अमल नहीं करेंगे, और ये आपका नहीं आपकी उम्र का दोष है।
What should be the aim/ लक्ष्य क्या होनी चाहिए।
सरकारी आंकड़ा कहती है कि भारत में एक आम इंसान की औसत उम्र करीबन 69 वर्ष है। मतलब हम कुछ भी कर लें इस उम्र के आसपास हमें इस दुनियाँ को , अपने शरीर को और हर एक दोस्त-दुश्मन को छोड़ कर के जाना है। फिर इस जीवन जीने में हम इतना सीरियस क्यों हो जाते हैं? हम इतना स्वार्थी क्यों हो जाते हैं कि खुद की ख्वाइश को पूरा करने के लिए हम किसी भी हद तक गुजर जाते हैं चाहे वो हद किसी की जीवन खराब क्यों न कर दे।
आप बेशक प्रेम करिए लेकिन अगर प्रेम किसी भौतिक वस्तु से हो जाये तो उसे कभी अपने जीवन में सम्मिलित करने की आकांक्षा को पनपने मत दीजिए।
श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि "समस्त दुखों का कारण किसी भी भौतिक वस्तु को अपना मान लेना ही है, अगर आप खुद को उससे जोड़ लेते हैं तो आपका दुखी होना तय है" ये तय है कि इस संसार में आपका कुछ नहीं है, किसी न किसी दिन आपको हर एक चीज को त्यागना ही है। फिर उस चीज से इतनी मोह क्यों कि अगर वो वस्तु पहले ही हमसे अलग हो जाये या हमें न मिल पाए तो हमें तकलीफ होती है।
प्रेम करिए तो श्री कृष्ण के जैसा, प्रेम का अर्थ सेवाभाव होनी चाहिए , उसकी खुशी होनी चाहिए न कि अपनी ख्वाइश।